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यतीम किसे कहते हैं ?

यतीम किसे कहते हैं ?

 यतीम किसे कहते हैं ? 


सवाल : यतीम किसे कहते हैं ? नीज़ कितनी उम्र तक बच्चा या बच्ची यतीम रहते हैं ? 
जवाब : वोह ना बालिग बच्चा या बच्ची जिस का बाप फ़ौत हो गया हो वोह यतीम है । बच्चा या बच्ची उस वक्त तक यतीम रहते हैं जब तक बालिग न हों , जूं ही बालिग हुए यतीम न रहे जैसा कि मुफस्सिरे शहीर , हकीमुल उम्मत हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खान फ़रमाते हैं : बालिग हो कर बच्चा यतीम नहीं रहता । इन्सान का वोह बच्चा यतीम है जिस का बाप फ़ौत हो गया हो , जानवर का वोह बच्चा यतीम है जिस की मां मर जाए , मोती वोह यतीम है जो सीप में अकेला हो उसे दुरे यतीम कहते हैं बड़ा कीमती होता है । 


यतीम के सर पर हाथ फेरने की फ़ज़ीलत 


सवाल : यतीम के साथ हुस्ने सुलूक करने और इस के सर पर हाथ फेरने की भी कोई फ़ज़ीलत है ? 
जवाब : यतीम के साथ हुस्ने सुलूक करने और इस के सर पर हाथ फेरने की हदीसे पाक में बड़ी फ़ज़ीलत आई है चुनान्चे हुस्ने अख़्लाक़ के पैकर , नबियों के ताजवर का फ़रमाने रूह परवर है : मुसल्मानों के घरों में बेहतरीन घर वोह है जिस में यतीम के साथ अच्छा सुलूक किया जाता हो और मुसल्मानों के घरों में बद तरीन घर वोह है जिस में यतीम के साथ बुरा बरताव किया जाता है । एक और हदीसे पाक में इर्शाद फ़रमाया : जो शख़्स यतीम के सर पर महज़ अल्लाह की रिज़ा के लिये हाथ फेरे तो जितने बालों पर उस का हाथ गुज़रा हर बाल के बदले में उस के लिये नेकियां हैं और जो शख्स यतीम लड़की या यतीम लड़के पर एहसान करे मैं और वोह जन्नत में ( दो उंग्लियों को मिला कर फ़रमाया कि ) इस तरह होंगे । इस हदीसे पाक के तहत मुफ़स्सिरे शहीर , हकीमुल उम्मत हज़रते मुफ्ती अहमद यार खान  फ़रमाते हैं : जो शख्स अपने अज़ीज़ या अजनबी यतीम के सर पर हाथ फेरे महब्बत व शफ़्क़त का येह महब्बत सिर्फ अल्लाह व रसूल की रिज़ा के लिये हो तो हर बाल के इवज़ उसे नेकी मिलेगी । येह सवाब तो खाली हाथ फेरने का है जो इस पर माल खर्च करे , उस की ख़िदमत करे , इसे ता'लीम व तरबियत दे सोच लो कि इस का सवाब कितना होगा । यतीम के सर पर हाथ फेरने से नेकियों के हुसूल के साथ साथ दिल की सख्ती दूर होती और हाजतें भी पूरी होती हैं जैसा कि हज़रते सय्यिदुना अबू दरदा  से रिवायत है कि एक शख्स ने नबिय्ये करीम  की बारगाहे अज़ीम में हाज़िर हो कर अपने दिल की सख्ती की शिकायत की , तो इर्शाद फ़रमाया : क्या तू चाहता है कि तेरा दिल नर्म हो जाए और तेरी हाजतें पूरी हों ? तो यतीम पर रहूम किया कर और उस के सर पर हाथ फेरा कर और अपने खाने में से उस को खिलाया कर ऐसा करने से तेरा दिल नर्म होगा और ह़ाजतें पूरी होंगी ।


यतीम के सर पर हाथ फेरने का तरीका 


सवाल : यतीम के सर पर हाथ फेरने का क्या त़रीक़ा है ?
जवाब : जब भी किसी यतीम बच्चे के सर पर हाथ फेरना हो तो सर के पीछे से हाथ फेरते हुए आगे की त़रफ़ ले आइये जैसा कि हदीसे पाक में है : लड़का यतीम हो तो उस के सर पर हाथ फेरने में आगे को लाए और जब इस का बाप हो ( या'नी बच्चा यतीम न हो ) तो हाथ फेरने में गरदन की तरफ़ ले जाए । '


यतीम की दी हुई चीज़ खा पी नहीं सकते

सवाल : यतीम की हिबा की हुई चीज़ खा पी सकते हैं या नहीं ? 
जवाब : यतीम किसी को अपनी कोई चीज़ हिबा नहीं कर सकता क्यूं कि “ हिबा सह़ीह़ होने की शराइत़ में से एक शर्त हिबा करने वाले का बालिग़ होना भी है । "  जब कि यतीम ना बालिग़ होता है । इसी तरह कोई दूसरा भी ना बालिग़ का माल हिबा नहीं कर सकता जैसा कि सदरुश्शरीअह , बदरुत्तरीक़ह मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली आ'ज़मी  फ़रमाते हैं : बाप को येह जाइज़ नहीं कि ना बालिग लड़के का माल दूसरे लोगों को हिबा कर दे अगर्चे मुआ - वज़ा ले कर हिबा करे कि येह भी ना जाइज़ है और खुद बच्चा भी अपना माल हिबा करना चाहे तो नहीं कर सकता या'नी उस ने हिबा कर दिया और मौहूब लह को दे दिया उस से वापस लिया जाएगा कि  ( ना बालिग का ) हिबा जाइज़ ही नहीं । येही हुक्म स – दके का है कि ना बालिग अपना माल न खुद स - दका कर सकता है न उस का बाप । येह बात निहायत याद रखने की है अक्सर लोग ना बालिग से चीज़ ले कर इस्ति'माल कर लेते हैं समझते हैं कि उस ने दे दी हालां कि येह देना न देने के हुक्म में है बा'ज़ लोग दूसरे के बच्चे से ( कूएं से ) पानी भरवा कर पीते या वुजू करते हैं या दूसरी तरह इस्ति'माल करते हैं येह ना जाइज़ है कि उस पानी का वोह बच्चा मालिक हो जाता है और हिबा नहीं कर सकता फिर दूसरे को उस का इस्ति'माल क्यूंकर जाइज़ होगा । अगर वालिदैन बच्चे को इस लिये चीज़ दें कि येह लोगों को हिबा कर दे या फ़क़ीरों को स - दका कर दे ताकि देने और स - दका करने की आदत हो और माल व दुन्या की महब्बत कम हो तो येह हिबा व स - दका जाइज़ है कि यहां ना बालिग के माल का हिबा व स - दका नहीं बल्कि बाप का माल है और बच्चा देने के लिये वकील है जिस तरह उमूमन दरवाजों पर साइल जब सुवाल करते हैं तो बच्चों ही से भीक दिलवाते हैं | 


यतीम के माल का गैर मोहतात इस्ति'माल

सवाल : जब घर का कोई फ़र्द फ़ौत हो जाता है तो बा'ज़ अवक़ात वोह यतीम बच्चे और माल छोड़ जाता है और उस का तर्का भी तक्सीम नहीं किया जाता ऐसी सूरत में क्या करना चाहिये ? 
जवाब : इल्मे दीन से दूरी और जहालत के सबब उमूमन ख़ानदानों में तर्का तक्सीम नहीं किया जाता अक्सर वु - रसा में यतीम बच्चे बच्चियां भी शामिल होते हैं और लोग बिला झिजक उन यतीमों का माल खाते पीते और हर तरह से इस्ति'माल करते हैं हालां कि येह सब ना जाइज़ है और इस की तरफ़ किसी की तवज्जोह ही नहीं होती । याद रखिये ! मय्यित के वु - रसा में से अगर कोई यतीम हो तो जब तक तर्का तक़सीम कर के यतीम का हिस्सा अलग न किया जाए तब तक उस में से मय्यित के ईसाले सवाब के लिये स - दका व खैरात वगैरा भी नहीं कर सकते । पारह 4 सू - रतुन्निसाअ की आयत नम्बर 10 में खुदाए रहमान का फ़रमाने आलीशान है : 
तर - ज - मए कन्जुल ईमान : वोह जो यतीमों का माल नाहक खाते हैं वोह तो अपने पेट में निरी आग भरते हैं और कोई दाम जाता है कि भड़क्ते धड़े में जाएंगे । इस आयते मुबा - रका के तह्त मुफ़स्सिरे शहीर , ह़कीमुल उम्मत हज़रते मुफ्ती अहमद यार ख़ान फ़रमाते हैं : " जब यतीम का माल अपने माल से मिला कर खाना हराम हुवा तो अला - ह़दा त़ौर पर खाना भी ज़रूर ह़राम है । इस से मा’लूम हुवा कि यतीम को हिबा दे सकते हैं मगर इस का हिबा ले नहीं सकते । येह भी मालूम हुवा कि वारिसों में जिस के यतीम भी हों उस के तर्के से नियाज़ , फ़ातिहा खैरात करना हराम है और इस खाने का इस्ति'माल हराम । अव्वलन माल तक़सीम करो फिर बालिग वारिस अपने माल से खैरात करे । " मजीद फ़रमाते हैं : ' जब मय्यित के यतीम या गाइब वारिस हों तो माले मुश्तरक में से इस की फ़ातिहा तीजा वगैरा हराम है कि इस में यतीम का हक़ शामिल है बल्कि पहले तक्सीम करो फिर कोई बालिग वारिस अपने हिस्से से येह सारे काम करे वरना जो भी वोह खाएगा दोज़ख की आग खाएगा । क़ियामत में उस के मुंह से धूआं निकलेगा । हदीस शरीफ़ में है कि यतीम का माल जुल्मन खाने वाले कियामत में इस तरह उठेंगे कि उन के मुंह , कान और नाक से बल्कि उन की कब्रों से धूआं उठता होगा जिस से वोह पहचाने जाएंगे कि येह यतीमों का माल नाहक खाने वाले हैं । " 
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! आज कल हालात इन्तिहाई ना गुफ्ता बिह हैं यतीमों का माल खाने से बचने का ज़ेहन ही नहीं होता । घर में किसी के फ़ौत हो जाने पर अगर सारे वु - रसा बालिग हों वहां तो एक दूसरे से हुकूक मुआफ़ भी करवाए जा सकते हैं और अगर एक भी ना बालिग बच्चा वारिसों में शामिल हो तो फिर जो लोग शरीअत के पाबन्द हैं वोह सख्त इम्तिहान में पड़ जाते हैं क्यूं कि फ़ी ज़माना खानदान वालों का जेह्न बनाना हर एक के बस का काम भी नहीं है । अगर कहीं सरा - हतन या दला - लतन मा'लूम हो कि मय्यित के घर वालों ने अभी तक तर्का तक्सीम नहीं किया और मय्यित के वु - रसा में ना बालिग भी हैं तो वहां खाने पीने वगैरा से इज्तिनाब किया जाए । 


यतीम का माल खाने से बचने का जज़्बा 

सवाल : यतीम का माल खाने से बचने के हवाले से एक दो वाकिआत बयान फ़रमा दीजिये ताकि यतीम का माल खाने से बचने का जज्बा पैदा हो । 
जवाब : यतीम का माल नाहक खाने की कुरआनो हदीस में जो वईदात हैं उन पर गौर कर के अपने आप को डराया जाए तो إِنْ شَاءَ ٱللَّٰهُ उस से बचने में काम्याबी हासिल हो सकती है । बहर हाल एक मोहतात मुबल्लिगे दा'वते इस्लामी का वाकिआ पेश किया जाता है إِنْ شَاءَ ٱللَّٰهُ आप को इस में एहतियात के काफ़ी मुश्कबार म - दनी फूल चुनने को मिलेंगे चुनान्चे एक मुबल्लिगे दा'वते इस्लामी अपने सफ़र में बा'ज़ अवक़ात एक ऐसे घर में कियाम करते थे जहां तीन सगे भाई इकट्ठे रहते थे । सब से बड़ा भाई मु - तवस्सितुल हाल ताजिर था । उस की वफ़ात हो गई , उन मुबल्लिगे दा'वते इस्लामी को फिर सफ़र में उसी घर में कियाम करना पड़ा और दौराने गुफ़्त - गू येह बात सामने आई कि मर्रम के दो ना बालिग बच्चे भी हैं और तर्का भी तक्सीम नहीं हुवा । घर के सारे अफ़ाद मिलजुल कर अब भी पहले की तरह खाते पीते और घर की तमाम अश्या में तसर्रफ़ करते हैं और उन मुबल्लिग की भी इसी माल से मेहमान नवाज़ी की जाएगी । वोह घबरा गए और उन्हों ने महूम के उस भाई को जो अब उन दो यतीम बच्चों का सर परस्त था बताया कि मैं आप के यहां कियाम कर सकता हूं और न ही खा पी सकता हूं और न ही आप की गाड़ी पर सुवार हो सकता हूं क्यूं कि आप के घर की हर चीज़ में अब इन दो यतीम बच्चों का भी हिस्सा शामिल हो गया है और मैं इन यतीम बच्चों की चीज़ों में कैसे तसर्राफ़ करूं ? बहर हाल वोह मुबल्लिगे दा'वते इस्लामी उस घर से दूसरी जगह चले गए और उन्हों ने अपने दिल को मुत्मइन करने के लिये दोनों यतीम बच्चों के लिये मुनासिब रकम ब इसरार पेश की और येह भी निय्यत शामिल की कि मेरी वजह से जो जो इस्लामी भाई मुलाकात वगैरा के लिये आए और यहां खाया पिया उन की भी खलासी हो जाए उन मुबल्लिगे दा'वते इस्लामी के समझाने पर अब उन घर वालों ने तर्के की हर हर शै का हिसाब कर के ना बालिग बच्चों का हिस्सा जुदा महफूज कर लिया है । ( शैखे तरीक़त , 
अमीरे अहले सुन्नत دامت بركاتهم العالية  एक म - दनी मुज़ा - करे में अपना वाकिआ यूं बयान फ़रमाया है :) मेरे बड़े भाई जब फ़ौत हुए तो उस वक्त तक वालिदे महूम का तर्का तक्सीम नहीं हुवा था । इन के छोड़े हुए माल ही में कारोबार होता रहा । बड़े भाईजान का इन्तिकाल होने पर मैं सख्त आजमाइश में आ गया क्यूं कि इन के पांच यतीम बच्चे भी थे और इन यतीम बच्चों की मां भी । अब भाई की मिल्किय्यत वाली हर चीज़ में इन सब का हक़ शामिल हो गया । मैं ने शरीअत के मुताबिक तर्का तक्सीम किया और इन को ज़ाइद पेश किया ताकि मेरी तरफ़ उन का कोई हक़ रह न जाए मगर फिर भी खौफ़ आता था कि कहीं उन यतीमों के माल में मुझ से हक त - लफ़ी न हो गई हो । अब मेरे पांचों भतीजे बालिग हो चुके हैं और मैं ने अपने पांचों भतीजों और इन की अम्मीजान से मुआफ़ी हासिल कर ली है । अल्लाह उन्हें दराज़िये उम्र बिलखैर अता फ़रमाए और हर तरह से अपनी हिफ़्ज़ो अमान में रखे ।

यतीम मुआफ़ नहीं कर सकता

सुवाल : अगर यतीम बच्चे ब खुशी मुआफ़ कर दें तो क्या मुआफ़ी हो सकती है ? नीज़ मसाइल मा'लूम न होने के सबब जिस ने ना बालिग या यतीम का माल खाया और येह भी मालूम नहीं कि कितना खाया और अब वोह बच्चे बालिग हो चुके हैं उसे क्या करना चाहिये ? 
जवाब : ना बालिग बच्चे मुआफ़ नहीं कर सकते , अगर वोह मुआफ़ कर दें तब भी मुआफ़ नहीं होगा लिहाज़ा मसाइल मा'लूम न होने के सबब जिस ने ना बालिग या यतीम का माल खाया तो वोह ज़न्ने गालिब का ए'तिबार करते हुए इतना माल उन को लौटाए और साथ में उन से मुआफ़ी भी मांगे । हां बालिग होने के बा'द वोह “ साबिक़ा ना बालिग या यतीम " अपनी खुशी से चाहें तो मुआफ़ भी कर सकते हैं लेकिन मुआफ़ी मांगने की बजाए उन का माल ही लौटाना चाहिये फिर अगर वोह माल लेने की बजाए मुआफ़ कर दें तो उन की मरज़ी है चुनान्चे मेरे आका आ'ला हज़रत , इमामे अहले सुन्नत , मुजद्दिदे दीनो मिल्लत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान फ़रमाते हैं : यतीमों का हक़ किसी के मुआफ़ किये मुआफ़ नहीं हो सकता यहां तक कि खुद यतीम का दादा या मां किसी ना बालिग के मां बाप इस का हक़ किसी को मुआफ़ कर दें हरगिज़ मुआफ़ न होगा ( क्यूं कि विलायत व सर परस्ती निगरानी के लिये हासिल होती है नुक्सान देने के लिये नहीं । ) बल्कि खुद यतीम व ना बालिग भी मुआफ़ नहीं कर सकते न उन की मुआफ़ी का कुछ ए'तिबार है ( क्यूं कि नुक्सान देह मुआ - मले में तसर्राफ़ करने से उन्हें मुकम्मल रोक दिया गया है । ) महूज़ यतीमों का हक ज़रूर देना पड़ेगा और जो निकलवा सकता है उसे चाहिये कि ज़रूर दिला दे , हां यतीम बालिग होने के बा'द मुआफ़ करे तो उस वक्त मुआफ़ हो सकेगा । 

लड़के और लड़की के बालिग होने की उम्र

सवाल : लड़का और लड़की कब बालिग होते हैं ? 
जवाब : हिजरी सिन के हिसाब से 12 से 15 साल की उम्र के दौरान जब भी लड़के को इन्जाल हो या सोते में एहतिलाम हो या उस के जिमाअ से औरत हामिला हो गई हो तो उसी वक्त बालिग हो गया और उस पर गुस्ल फ़र्ज़ हो गया । अगर ऐसा न हुवा तो हिजरी सिन के मुताबिक़ 15 बरस का होते ही बालिग हो जाएगा । इसी तरह हिजरी सिन के हिसाब से 9 से 15 साल की उम्र के दौरान लड़की को जब भी एहतिलाम हो या हैज़ आ जाए या हम्ल ठहर जाए तो बालिगा हो गई वरना हिजरी सिन के मुताबिक़ 15 साल की होते ही बालिगा है । 

क़ब्र पर बैठना ह़राम है

सुवाल : क़ब्र पर बैठना कैसा है ? 
जवाब : क़ब्र पर बैठना हराम है । दा'वते इस्लामी के इशाअती इदारे मक - त - बतुल मदीना की मत्बूआ 1250 सफ़हात पर मुश्तमिल किताब , " बहारे शरीअत " जिल्द अव्वल सफ़हा 847 पर है " कब्र पर बैठना , सोना , चलना , पाखाना , पेशाब करना हराम है । कब्रिस्तान में जो नया रास्ता निकाला गया उस से गुज़रना ना जाइज़ है । ख्वाह नया होना उसे मालूम हो या इस का गुमान हो । " नबिय्ये पाक , साहिबे लौलाक ने इर्शाद फ़रमाया : तुम में से किसी का अंगारों पर बैठना और उन का उस के कपड़े जला कर जिल्द तक पहुंच जाना उस के लिये इस से बेहतर है कि किसी कब्र पर बैठे । हज़रते सय्यदुना उमारा बिन हज्म फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह ने मुझे एक कब्र के ऊपर बैठे देखा तो इर्शाद फ़रमाया : ऐ क़ब्र ( के ऊपर बैठने ) वाले ! नीचे उतर जा , न तू क़ब्र वाले को ईज़ा दे न वोह तुझे ईज़ा दे ।

मुसल्मानों की कब्रों को रोंदना जाइज़ नहीं

सवाल : कब्रिस्तान में जा बजा कळे हों तो क्या अपने अइज्जा व अविबा को ईसाले सवाब करने के लिये उन की कुबूर तक जा सकते हैं ? 
जवाब : ईसाले सवाब करने के लिये अपने अज़ीज़ो अकारिब की कुबूर पर जा सकते हैं लेकिन वहां तक पहुंचने के लिये दूसरे मुसल्मानों की कब्रों को रोंदना जाइज़ नहीं । हृदी - कतुन्नदिय्यह में है : पैर की आफ़तों में से कब्रों पर चलना भी है । अगर दूसरी कब्रों पर पाउं रखे बिगैर अपने अइज्जा व अक़िबा की कब्रों तक जाना मुम्किन न हो तो दूर ही से फ़ातिहा पढ़ लीजिये क्यूं कि कब्रों पर जाना मुस्तहब काम है और मुसल्मान की कब्र पर पाउं रखना हराम , मुस्तहब काम के लिये हराम 
काम की शरीअत में इजाज़त नहीं । मेरे आका आ'ला हज़रत , इमामे अहले सुन्नत , मुजद्दिदे दीनो मिल्लत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान फ़रमाते हैं : इस का लिहाज़ लाज़िम है कि जिस क़ब्र के पास बिल खुसूस जाना चाहता है उस तक ( ऐसा ) क़दीम ( या'नी पुराना ) रास्ता हो ( जो कि कक्रे मिटा कर न बनाया गया हो ) , अगर कब्रों पर से हो कर जाना पड़े तो इजाज़त नहीं , सरे राह दूर खड़े हो कर एक कब्र की तरफ़ मु - तवज्जेह हो कर ईसाले सवाब कर दे । हृदीसे पाक में है कि मुझे तलवार पर चलना मुसल्मान की क़ब्र पर चलने से ज़ियादा पसन्द है । बहूर्राइक में है : कब्रों की ज़ियारत और मुसल्मान मुर्दो के हक में दुआ करने में हरज नहीं बशर्ते कि कब्र रोंदी न जाएं । फ़त्हुल क़दीर में है : : कब्र पर बैठना और इस को रोंदना मरूह है तो वोह लोग जिन के रिश्तेदारों के गिर्द दूसरों की कब्रे हों उन का कब्रों को रोंदना अपने करीबी रिश्तेदार की क़ब्र तक पहुंचने के लिये मरूह है । मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! कुबूरे मुस्लिमीन का अ - दबो एहतिराम कीजिये और इन को रोदने से बचिये बिल खुसूस मक्कए मुकर्रमा व मदीनए मुनव्वरह; जाने वाले आशिकाने रसूल जन्नतुल मा'ला और जन्नतुल बक़ीअ के मदफूनीन की खिदमत में कब्रिस्तान के बाहर ही से खड़े हो कर सलाम अर्ज करें और दुआ मांगें क्यूं कि अब सहाबए किराम , अहले बैते अहार और औलियाए किराम के मज़ारात और आम मुस्लिमीन की कुबूर को शहीद कर दिया गया है । अगर आप अन्दर गए तो कहीं ऐसा न हो कि आप का पाउं किसी के मजार शरीफ़ पर पड़ जाए और बे अ - दबी हो जाए । अल्लाह हमें बे अ - दबी से बचाए । 
जो है बा अदब वोह बड़ा बा नसीब और जो है बे अदब वोह निहायत बुरा है 

बच्चे को सुलाने के लिये अफ़्यून खिलाना

सवाल : बच्चे को सुलाने के लिये अफ्यून खिलाना कैसा है ? 
जवाब : फ़तावा र - ज़विय्या जिल्द 24 सफ़हा 198 पर है : “ अफ़्यून हराम है , ( लेकिन ) नजिस नहीं , ( लिहाज़ा ) खारिजे बदन पर इस का इस्ति'माल जाइज़ है । बच्चे को सुलाने या रोने से बाज़ रखने के लिये अफ़्यून देना हराम है और इस का गुनाह उस देने वाले पर है बच्चे पर नहीं । " अफ़्यून में सत्तर बुराइयां हैं जैसा कि मुफ़स्सिरे शहीर , हकीमुल उम्मत हज़रते मुफ्ती अहमद यार खान फ़रमाते हैं : मिस्वाक के सत्तर फ़ाइदे हैं : जिन में से एक येह है कि उसे मरते वक्त कलिमा नसीब होता है , येह पाईरिया से महफूज़ रखती है , गन्दा दहनी दूर करती है , दांतों व मे'दे को क़वी करती है , आंखों में रोशनी देती है । और अफ़्यून बुराइयां हैं : जिन में से एक येह है कि उस से खराबिये ख़ातिमे का अन्देशा है ।

हामिला औरत को तलाक़ देने का हुक्म

सवाल : क्या हामिला औरत को तलाक देने से तलाक वाकेअ हो जाती है ? 
जवाब : हम्ल में तलाक़ न दी जाए लेकिन फिर भी अगर किसी ने अपनी हामिला बीवी को तलाक़ दी तो तलाक वाकेअ हो जाएगी । पारह 28 सू - रतुत्तलाक़ की आयत नम्बर 4 में खुदाए रहमान का फ़रमाने आलीशान है : तर - ज - मए कन्जुल ईमान : और  हम्ल वालियों की मीआद येह है कि वोह अपना हम्ल जन लें ।
एक और जगह इर्शाद होता है : तर - ज - मए कन्जुल ईमान : और अगर हम्ल वालियां हों तो उन्हें नान BALCcial व नफ्का दो यहां तक कि उन के  बच्चा पैदा हो । कुरआने पाक का हामिला औरत की इद्दत और इस के नान नफ्के का बयान करना इस बात की दलील है कि हालते हम्ल में तलाक वाकेअ हो जाती है । याद रखिये ! हामिला औरतों की इद्दत वए हम्ल ( या'नी बच्चा जनने तक ) है ख्वाह वोह इद्दत तलाक़ की हो या वफ़ात की । जैसे ही बच्चा पैदा हो इद्दत ख़त्म हो जाएगी म - सलन एक दिन में बच्चा पैदा हो गया तो एक ही दिन में इद्दत ख़त्म और अगर म - सलन छ माह में बच्चा पैदा हुवा तो छ माह तक इद्दत रहेगी । 

जहेज़ का मालिक कौन ?

सुवाल : जहेज़ मर्द या औरत में से किस की मिल्क होता है ? 
जवाब : जहेज़ औरत की मिल्क होता है । शादी बियाह के मौकअ पर लड़की को जो कुछ जहेज़ में ( जेवरात और दीगर सामान वगैरा ) वालिदैन , अज़ीज़ो अकारिब और लड़के वालों की तरफ़ से दिया जाता है , वोह सब लड़की की मिल्किय्यत होता है क्यूं कि जहेज़ के मुआ - मले में फु - कहा ने उर्फ ( मुआ - शरे में जैसा रवाज है उस ) को मो'तबर जाना है । फ़िक़्ह की किताबों में अ - रबो अजम के बारे में येही लिखा है कि जहेज़ और शादी के वक़्त लड़की को दोनों जानिब से जो जेवरात और कपड़े वगैरा दिये जाते हैं वोह लड़की ही की मिल्किय्यत होते हैं लिहाज़ा उर्फ का ए'तिबार होगा । नीज़ तलाक़ के बाद भी येह तमाम ज़ेवरात वगैरा जो लड़के वालों की जानिब से लड़की को मिले हैं येह सब लड़की की मिल्किय्यत होंगे । पाक व हिन्द में ऐसा ही उर्फ है कि शादी के वक़्त लड़की को मालिक बना कर जेवरात वगैरा दे दिये जाते हैं न कि आरियतन ( वापस ली जाने वाली चीज़ ) ! तलाक़ के बाद अगर किसी बिरादरी ( खानदान ) में येह उर्फ हो कि लड़के वाले अपने जेवरात वापस ले लेते हैं तो इस उर्फ का ए'तिबार न होगा । लड़की जिस चीज़ की मालिक हो चुकी है उस में बिरादरी ( ख़ानदान ) वाले अगर येह फैसला करें कि तलाक के बाद उस से उस की मिल्किय्यत सल्ब कर ली जाएगी तो येह रवाज शरीअत के ख़िलाफ़ है । हां ! अगर किसी बिरादरी ( खानदान ) में येह रवाज हो कि देते वक्त मालिक बना कर न देते हों बल्कि आरियत के तौर पर देते हों और बिरादरी ( खानदान ) वाले इस उर्फ पर शाहिद हों तो इस उर्फ का ए'तिबार होगा और लड़की मालिक न होगी । 
यहां तक कि अगर बाप ने बेटी के लिये जहेज़ तय्यार किया और उसे बेटी के सिपुर्द कर दिया या'नी मालिकाना तौर पर दे दिया तो अब बाप भी वापस नहीं ले सकता जैसा कि दुई मुख़्तार में है कि किसी शख्स ने अपनी बेटी को कुछ जहेज़ दिया और वोह उस के सिपुर्द भी कर दिया तो अब उस से वापस नहीं ले सकता और न ही उस के मरने के बाद उस के वारिस वापस ले सकते हैं बल्कि वोह खास औरत की मिल्किय्यत है और इसी पर फ़तवा दिया जाता है बशर्ते कि उस ने येह जहेज़ हालते सिहत में बेटी के सिपुर्द किया हो ( या'नी म - रजुल मौत में न दिया हो ) । 

शोहर ज़ौजा का जहेज़ नहीं रख सकता

सवाल : ज़ौजा फ़ौत हो जाए तो क्या सारा जहेज़ शोहर रख सकता है या नहीं ? 
जवाब : जोजा फ़ौत हो जाए तो शोहर या कोई और उस के जहेज़ वगैरा का तन्हा मालिक या हक़दार नहीं हो सकता बल्कि वोहा सारा सामान जो औरत की जाती मिल्किय्यत था , उस के मरने के बाद शर - ई कानून के मुताबिक़ वु - रसा में तक़सीम होगा जैसा कि मेरे आका आ'ला हज़रत , इमामे अहले सुन्नत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खान फ़रमाते हैं : जहेज़ हमारे बिलाद के उर्फे आम शाएअ से ख़ास मिल्के ज़ौजा होता है जिस में शोहर का कुछ हक़ नहीं , तलाक़ हुई तो कुल लेगी और मर गई तो उसी के वु - रसा पर तक्सीम होगा । 

क्या कबूतर सय्यिद होते हैं ?

सवाल : अवाम में येह मशहूर है कि कबूतर सय्यिद हैं येह कहां तक 
जवाब : अवाम में येह गलत मशहूर है कोई भी जानवर सय्यिद नहीं होता । अलबत्ता हरम शरीफ़ के कबूतर उन कबूतरों की नस्ल में से हैं जिन्हों ने गारे सौर के दरवाजे पर घोंसला बना कर अन्डे दिये थे , चुनान्चे जब कुफ्फ़ारे ना हन्जार सरकारे आली वकार , मदीने के ताजदार को ढूंड रहे थे और सरकार गारे सौर में तशरीफ़ ले गए तो " अल्लाह ने एक दरख्त को गार के दरवाजे पर उगने का हुक्म दिया , मकड़ी को गार के दरवाजे पर जाला तनने का हुक्म दिया और दो जंगली कबूतर भेजे वोह गार के दरवाजे पर ठहर गए और घोंसला बना दिया । मुश्किीन येह देख कर वापस लौट गए कि गार में कोई भी नहीं , तो सरकारे आली वकार iaiasi.said is ने उन कबूतरों पर अपना दस्ते शफ़्क़त फेरा और उन्हें दुआए खैर से नवाज़ा तो हरम शरीफ़ के कबूतर उन्ही कबूतरों की नस्ल से हैं । " 
मुफस्सिरे शहीर , हकीमुल उम्मत हज़रते मुफ़्ती अहमद यार खान फ़रमाते हैं : उस गार के दरवाजे पर पहुंच कर बा'ज़ काफ़िर बोले कि इस के अन्दर जा के देख लो तो दूसरे बोले कि अगर इस में कोई घुसा होता तो जाला और कबूतरी के अन्डे टूट जाते एक बोला कि येह जाला तेरी पैदाइश से पहले का है हालां कि हुजूर के अन्दर पहुंच जाने के बाद वोह जाला मकड़ी ने तना था कबूतरी ने अन्डे दिये थे अगर रब चाहे तो अपने महबूब को मकड़ी के जाले की ज़रीए बचाए , गज़ब करे तो फ़िरऔन को उस के कल्ए की दीवारें न बचा सकें । बुजुर्गाने दीन फ़रमाते हैं कि हरम के कबूतर उसी कबूतरी की नस्ल हैं जिस ने वहां अन्डे दिये थे उन का अब तक एहतिराम है । 
इमाम बूसीरी फ़रमाते हैं :


या'नी मुश्रिकीन ने कबूतरी और मकड़ी के बारे में गुमान किया कि येह खैरुल बरिय्या , सय्यिदुल वरा , जनाबे मुहम्मदे मुस्तफ़ा पर ( इन की हिफ़ाज़त के लिये ) जाला तनने वाली और अन्डे देने वाली नहीं हैं । 


कबूतर के पाउं सुर्ख होने का वाक़िआ

सवाल : कहते हैं कि इमामे आली मक़ाम हज़रते सय्यिदुना इमामे हुसैन की शहादत के बा'द कबूतर ने अपने पाउं खूने इमाम से तर किये और करबलाए मुअल्ला से परवाज़ करता हुवा मदीनए मुनव्वरह में सरकारे मदीना की बारगाह में फ़रियाद के लिये हाज़िर हुवा उस वक्त से कबूतर के पाउं सुर्ख हो गए । बात कहां तक दुरुस्त है ? 
जवाब : इमामे आली मक़ाम हज़रते सय्यिदुना इमामे हुसैन की शहादत के बाद कबूतर का अपने पाउं खूने इमाम से तर करने और फिर करबलाए मुअल्ला से परवाज़ करते हुए राहते कल्बे नाशाद , महबूबे रब्बुल इबाद की बारगाह में फ़रियाद के लिये हाज़िर होने का वाक़िआ मेरी नज़र से नहीं गुज़रा , अलबत्ता तफ़्सीरे सावी में कबूतर के पाउं सुर्ख होने का ईमान अफ़ोज़ वाकिआ कुछ यूं है : ( तूफ़ाने नूह गुज़र जाने के बाद जब नूह की कश्ती कोहे जूदी पर ठहर गई तो ) हज़रते सय्यिदुना नूह ने ज़मीन की खबर लाने के लिये किसी को भेजने का इरादा फ़रमाया तो सब से पहले मुर्गी ने अर्ज की : मैं ज़मीन की खबर लाऊंगी । आप ने उस के बाजूओं पर मोहर लगा कर फ़रमाया : तुझ पर मेरी मोह लग चुकी है कि तू हमेशा लम्बी परवाज़ नहीं कर सकेगी और मेरी उम्मत तुझ से फ़ाएदा हासिल करेगी । फिर आप ने कव्वे को भेजा मगर वोह एक मुर्दार को देख कर उस पर उतर पड़ा और वापस नहीं आया । आप ने उस पर ला'नत फ़रमा दी और उस के लिये ख़ौफ़ में मुब्तला रहने की दुआ कर दी चुनान्चे कव्वे को हिल्लो हरम में कहीं भी पनाह नहीं । फिर आप  ने कबूतर को भेजा तो वोह ज़मीन पर नहीं उतरा बल्कि मुल्के सबा से जैतून की एक पत्ती चोंच में ले कर आ गया । आप ने उस से फ़रमाया : तुम ज़मीन पर नहीं उतरे इस लिये फिर जाओ और ज़मीन की ख़बर लाओ चुनान्चे कबूतर दोबारा रवाना हुवा और मक्कए मुकर्रमा में ह - रमे का'बए मुशर्रफ़ा की ज़मीन पर उतरा और देख लिया कि पानी ज़मीने हरम से ख़त्म हो चुका है और सुर्ख रंग की मिट्टी जाहिर हो गई है । कबूतर के दोनों पाउं सुर्ख मिट्टी से रंगीन हो गए और वोह उसी हालत में हज़रते सय्यिदुना नूह : के पास वापस आ गया और अर्ज की : या नबिय्यल्लाह ! मेरे लिये येह बात खुशी का बाइस होगी कि आप मेरे गले में खूब सूरत हार पहना दीजिये और मेरे पाउं सुर्ख फ़रमा दीजिये और मुझे ज़मीने हरम में रिहाइश का शरफ़ बख़्श दीजिये । हज़रते सय्यिदुना नूह ने कबूतर की चोंच और गरदन पर दस्ते शफ़्क़त फेरा , उसे हार पहनाया , उस के पाउं को सुर्थी अता फ़रमाई , उस के लिये और उस की औलाद के लिये ब - र - कत की दुआ मांगी । 

कबूतर की ख़ास आदात व सिफ़ात

सवाल : कबूतर की कुछ ख़ास आदात बयान फ़रमा दीजिये । 
जवाब : हज़रते सय्यिदुना अल्लामा कमालुद्दीन अदमीरी फ़रमाते हैं : कबूतर की ख़ास आदत येह है कि अगर उस को एक हज़ार मील के फ़ासिले से भी छोड़ा जाए तो येह उड़ कर अपने घर पहुंच जाता है नीज़ दूर दराज मुल्कों से ख़बरें लाता और ले जाता है और यह भी देखने में आया है कि अगर कभी किसी का पालतू कबूतर और किसी जगह पकड़ा गया और तीन तीन साल या इस से भी ज़ियादा मुद्दत तक अपने घर से गाइब रहा मगर बा वुजूद इस तवील गैर हाज़िरी के वोह अपने घर को नहीं भूलता और अपनी सबाते अक्ल , कुव्वते हाफ़िज़ा और कशिशे घर पर बराबर काइम रहता है और जब कभी उसे मौक़अ मिलता है उड़ कर अपने घर आ जाता है । मजीद फ़रमाते हैं : अगर किसी शख्स के आ'ज़ा शल हो जाएं या लक्वा , फ़ालिज का असर हो जाए तो ऐसे शख्स को किसी ऐसी जगह जहां कबूतर रहते हों वहां या कबूतर के करीब रहना मुफीद है , येह कबूतर की अजीबो गरीब खासिय्यत है , इस के इलावा ऐसे शख्स के लिये उस का गोश्त भी फ़ाएदे मन्द है । 
कबूतर का गोश्त हलाल है
सवाल : कबूतर का गोश्त खाना हलाल है या हराम ? 
जवाब : कबूतर हलाल परिन्दों में से है । फु - कहाए किराम ने ऊंचा उड़ने वाले हलाल परिन्दों में कबूतर और चिड़िया का भी जिक्र फ़रमाया है । लिहाज़ा इस का गोश्त खाने में किसी किस्म की कराहत नहीं मेरे आका आ'ला हज़रत की बारगाह में सुवाल हुवा कि " कबूतर खाने में किसी किस्म की कराहत है ? " तो आप ने जवाबन इर्शाद फ़रमाया : कुछ नहीं ।

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