कुरान (Qur'an) इस्लाम धर्म



कुरान (Qur'an) इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रंथ है, जिसे मुसलमान अल्लाह का वचन मानते हैं। यह अरबी भाषा में है और इसमें 114 सूरह (अध्याय) हैं, जो विभिन्न विषयों जैसे आध्यात्मिकता, नैतिकता, मार्गदर्शन, और सामाजिक नियमों को कवर करते हैं। इसे पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) पर जिब्रईल (फरिश्ते) के माध्यम से 23 वर्षों में अवतरित किया गया।

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कुरान का इतिहास इस्लाम के उदय और इसके संकलन से गहराई से जुड़ा हुआ है। नीचे कुरान के इतिहास का संक्षिप्त और व्यवस्थित विवरण दिया गया है:

1. अवतरण (Revelation)

- **समयावधि**: कुरान का अवतरण 610 ईस्वी से 632 ईस्वी तक, लगभग 23 वर्षों में हुआ।
- **स्थान**: मक्का और मदीना (आधुनिक सऊदी अरब)।
- **प्रक्रिया**: कुरान को अल्लाह द्वारा पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) पर फरिश्ते जिब्रईल (गैब्रियल) के माध्यम से अवतरित किया गया। पहला अवतरण मक्का में हिरा गुफा में हुआ, जब पैगंबर 40 वर्ष के थे। पहली आयत थी: "इक़रा" (पढ़ो), जो सूरह अल-अलक (96) में है।
- **प्रकृति**: कुरान को टुकड़ों में अवतरित किया गया, जो विभिन्न परिस्थितियों और जरूरतों के अनुसार था, जैसे मार्गदर्शन, कानून, या नैतिक शिक्षाएँ।

2. मौखिक संरक्षण

- **प्रारंभिक प्रसार**: कुरान को मुख्य रूप से मौखिक रूप से संरक्षित किया गया। पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) इसे सुनते और अपने साथियों (सहाबा) को सिखाते थे। कई सहाबा ने इसे हिफ्ज़ (याद) किया।
- **लिखित रिकॉर्ड**: कुछ सहाबा, जैसे ज़ैद बिन थाबित, ने आयतों को खजूर की पत्तियों, चमड़े, हड्डियों और पत्थरों पर लिखा। हालांकि, मौखिक संरक्षण प्राथमिक था।

3. संकलन (Compilation)

- **पैगंबर के समय में**: पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) के जीवनकाल में कुरान पूर्ण हुआ, और आयतों का क्रम जिब्रईल के मार्गदर्शन में तय किया गया। लेकिन यह एक पुस्तक के रूप में संकलित नहीं था।
- **अबू बक्र के समय (632-634 ईस्वी)**: पैगंबर की मृत्यु के बाद, पहले खलीफा अबू बक्र के शासनकाल में, यमामा की जंग में कई हाफिज़ (कुरान याद करने वाले) सहाबा की मृत्यु हो गई। उमर (बाद में दूसरा खलीफा) के सुझाव पर, अबू बक्र ने ज़ैद बिन थाबित को कुरान को एकत्र करने का आदेश दिया। ज़ैद ने मौखिक और लिखित स्रोतों से कुरान को एकत्र किया और इसे "सुहुफ" (पन्नों) के रूप में संरक्षित किया। यह संकलन हफ्सा (पैगंबर की पत्नी) के पास रखा गया।
- **उस्मान के समय (644-656 ईस्वी)**: तीसरे खलीफा उस्मान बिन अफ्फान के समय में, विभिन्न क्षेत्रों में कुरान की पाठशैली (क़िरात) में मामूली अंतर देखे गए। एकरूपता लाने के लिए, उस्मान ने ज़ैद बिन थाबित और अन्य विद्वानों की एक समिति बनाई। उन्होंने हफ्सा के सुहुफ के आधार पर कुरान को एक मानक प्रति (मुसहफ) में संकलित किया। इस प्रति को "उस्मानी मुसहफ" कहा जाता है। इसकी प्रतियां विभिन्न इस्लामी केंद्रों (जैसे मक्का, मदीना, कूफा, बस्त्रा) में भेजी गईं, और अन्य सभी लिखित सामग्रियों को नष्ट कर दिया गया ताकि एकरूपता बनी रहे।

4. संरक्षण और प्रसार

- **लिखावट का विकास**: शुरुआती कुरान में अरबी लिपि बिना नुक्तों और स्वर-चिह्नों (हरकात) के थी। 8वीं और 9वीं शताब्दी में, अरबी लिपि में सुधार हुआ, और नुक्ते व हरकात जोड़े गए ताकि गैर-अरबी भाषियों के लिए पाठ आसान हो।
- **विश्वव्यापी प्रसार**: कुरान का पाठ आज तक अपरिवर्तित रहा है। इसे दुनिया भर में लाखों लोगों ने हिफ्ज़ किया है, और यह विभिन्न भाषाओं में अनुवादित हुआ है, हालांकि मूल अरबी पाठ ही प्रामाणिक माना जाता है।
- **मुद्रण**: 19वीं सदी में मुद्रण तकनीक के साथ कुरान की प्रतियां बड़े पैमाने पर छापी गईं। आज यह डिजिटल रूप में भी उपलब्ध है।

5. विशेषताएँ

- **अपरिवर्तनीयता**: मुसलमान मानते हैं कि कुरान अल्लाह का शाश्वत वचन है, जो अपरिवर्तित और सुरक्षित है।
- **भाषा और शैली**: कुरान की अरबी भाषा अपनी साहित्यिक सुंदरता और गहनता के लिए प्रसिद्ध है। इसे "इजाज़" (चमत्कार) माना जाता है, जो मानव द्वारा दोहराया नहीं जा सकता।
- **क़िरात**: कुरान की सात मान्य पाठशैलियाँ (क़िरात) हैं, जो उच्चारण में थोड़ा भिन्न हैं लेकिन अर्थ में एकसमान हैं।

6. आधुनिक संदर्भ

- कुरान का अध्ययन आज भी तफ़सीर (व्याख्या), तजवीद (उच्चारण नियम), और हदीस (पैगंबर की शिक्षाओं) के साथ किया जाता है।
- डिजिटल युग में, कुरान ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, ऐप्स, और ऑडियो के रूप में उपलब्ध है।

यदि आप कुरान के इतिहास के किसी विशिष्ट पहलू, जैसे संकलन की प्रक्रिया, उस्मानी मुसहफ, या किसी सूरह के अवतरण के संदर्भ के बारे में और जानना चाहते हैं, तो कृपया बताएँ!