मुंह की सफ़ाई के फ़ाएदे
Moun Ki Safai Ke Faiday
منہ کی صفائی کے فائدے
किरामन कातिबीन और खिलाल न करने वाले
हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी फरमाते हैं कि हुजूर सय्यिदे दो आलम صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَإِلِهِ وَسَلَّم हमारे पास तशरीफ लाए और फ़रमाया, "खिलाल करने वाले कितने उम्दा हैं।" सहाबए किराम عَلَيْهِمُ الرَّضْوَان ने अर्ज की, "या रसूलल्लाह صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّم ! किस चीज़ से खिलाल करने वाले ?" फ़रमाया, "वुज़ू में खिलाल करने वाले और खाने के बा'द खिलाल करने वाले। वुजू का खिलाल कुल्ली करना, नाक में पानी चढ़ाना और उंग्लियों के दरमियान (खिलाल करना) है जब कि खाने का खिलाल खाने के बा'द है और किरामन कातिबीन (या'नी आ'माल लिखने वाले दोनों बुजुर्ग फ़िरिश्तों) पर इस से ज़ियादा कोई बात शदीद नहीं कि वोह जिस शख्स पर मुकर्रर हैं उसे इस हाल में नमाज़ पढ़ता देखें कि उस के दांतों के दरमियान कोई चीज़ हो।"
पान खाने वाले मुतवज्जेह हों
मेरे आका आ'ला हज़रत, इमामे अहले सुन्नत, इमाम अहमद रज़ा खान رَحْمَةُ اللَّهِ عَلَيْهِ फरमाते हैं, पानों के कसरत से आदी खुसूसन जब कि दांतों में फ़ज़ा (गेप) हो तजरिबे से जानते हैं छालिया के बारीक रेज़े और पान के बहुत छोटे छोटे टुकड़े इस तरह मुंह के अताफ व अक्नाफ़ में जा गीर होते हैं (या'नी मुंह के कोनों और दांतों के खांचों में घुस जाते हैं) कि तीन बल्कि कभी दस बारह कुल्लियां भी उन के तस्फियए ताम (या'नी मुकम्मल सफाई) को काफी नहीं होतीं,
न खिलाल उन्हें निकाल सकता है न मिस्वाक, सिवा कुल्लियों के कि पानी मनाफ़िज़ (या'नी सूराखों) में दाखिल होता और जुम्बिशें देने (या'नी हिलाने) से जमे हुए बारीक ज़र्रों को ब तदरीज छुड़ा छुड़ा कर लाता है, इस की भी कोई तहदीद (हद बन्दी) नहीं हो सकती और येह कामिल तस्फिया (या'नी मुकम्मल सफ़ाई) भी बहुत मुअक्किद (या'नी इस की सख्त ताकीद) है मुतअद्दद अहादीस में इर्शाद हुवा है कि जब बन्दा नमाज़ को खड़ा होता है फ़िरिश्ता उस के मुंह पर अपना मुंह रखता है येह जो पढ़ता है इस के मुंह से निकल कर फ़िरिश्ते के मुंह में जाता है उस वक़्त अगर खाने की कोई शै उस के दांतों में होती है मलाएका को उस से ऐसी सख़्त ईज़ा होती है कि और शै से नहीं होती।
हुजूरे अकरम صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّم ने फरमाया, जब तुम में से कोई रात को नमाज़ के लिये खड़ा हो तो चाहिये कि मिस्वाक कर ले क्यूं कि जब वोह अपनी नमाज़ में किराअत करता है तो फ़िरिश्ता अपना मुंह इस के मुंह पर रख लेता है और जो चीज़ उस के मुंह से निकलती है वोह फ़िरिश्ते के मुंह में दाखिल हो जाती है।
और तबरानी ने कबीर में हज़रते अबू अय्यूब अन्सारी से रिवायत की है कि दोनों फ़िरिश्तों पर इस से ज़ियादा कोई चीज़ गिरां नहीं कि वोह अपने साथी को नमाज़ पढ़ता देखें और उस के दांतों में खाने के रेज़े फंसे हों। )
दांतों में कमज़ोरी
हज़रते इब्ने उमर رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا फ़रमाते हैं, "जो खाना (बोटी के रेशे वगैरा) दाढ़ों में रह जाता है वोह दाढ़ों को कमज़ोर कर देता है।"
खिलाल कैसा हो ?
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! जब भी खाना या कोई गिजा खाएं
खिलाल की आदत बनानी चाहिये। बेहतर येह है कि खिलाल नीम की लकड़ी का हो कि उस की तल्खी से मुंह की सफाई होती है और येह मसूढ़ों के लिये मुफीद होती है। बाज़ारी TOOTH PICKS उमूमन मोटी और कमज़ोर होती हैं। नारियल की तीलियों की गैर मुस्ता'मल झाडू की एक तीली या खजूर की चटाई की एक पट्टी से ब्लेड के ज़रीए कई मज़बूत खिलाल तय्यार हो सकते हैं। बा'ज़ अवकात मुंह के कोने के दांतों में खुला होता है और उस में बोटी वगैरा का रेशा फंस जाता है जो कि तिन्के वगैरा से नहीं निकल पाता। इस तरह के रेशे निकालने के लिये मेडीकल स्टोर पर मख्सूस तरह के धागे (Flossers) मिलते हैं नीज़ ऑपरेशन के आलात की दुकान पर दांतों की स्टील की कुरेदनी (curved sickle scaler) भी मिलती है मगर इन चीज़ों के इस्ति' माल का तरीका सीखना बहुत ज़रूरी है वरना मसूढ़े ज़ख्मी हो सकते हैं।
खिलाल की सात निय्यात
हदीसे पाक में है, अल्लाह पाक के प्यारे महबूब صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّم का फ़रमाने अज़ीमुश्शान है, "मुसल्मान की निय्यत उस के अमल से बेहतर है।" )5942 : جم کبیر ،185/6 ، حدیث खिलाल शुरू करने से क़ब्ल बल्कि खाना शुरूअ करने से पहले ही येह निय्यतें कर के सवाब का खज़ाना हासिल कर लीजिये । (1) खाने के बा'द खिलाल की सुन्नत अदा करूंगा (2) खिलाल शुरूअ करने से कब्ल बिस्मिल्लाह पढूंगा (3) मिस्वाक करने के लिये मदद हासिल करूंगा (क्यूं कि दांतों के खुला में अटके हुए गिज़ाई अज्ज़ा जब सड़ते हैं तो मसूढ़े कमज़ोर और बीमार पड़ जाते और उन से खून बहने लगता है लिहाजा मिस्वाक करना दुश्वार हो जाता है) (4) वुजू में कामिल तौर पर कुल्लियां करने पर मदद हासिल करूंगा (अन्दरूने मुंह हर हर पुर्जे पर और दांतों की दरमियानी खलाओं में पानी बह
जाए इस तरह तीन बार कुल्लियां करना वुजू में सुन्नते मुअक्कदा है और मज़्कूरा तरीके पर गुस्ल में एक बार कुल्ली करना फ़र्ज़ और तीन बार सुन्नत है) (5) दांतों को अमराज़ से बचाने की कोशिश कर के इबादत पर कुव्वत हासिल करूंगा (क्यूं कि खिलाल करने की वजह से ग़िज़ा के अज्ज़ा निकल जाएंगे और यूं मसूढ़ों की बीमारियों से तहफ्फुज़ हासिल होगा और अच्छी सिह्द्दत से इबादत पर कुव्वत हासिल होती है) (6) मुंह को बदबू से बचा कर मस्जिद के अन्दर दाखिला बहाल रखने पर मदद हासिल करूंगा (ज़ाहिर है खाने के अज्जा दांतों में अटके रहेंगे तो सड़ कर बदबू का बाइस होंगे और जब मुंह में बदबू हो तो मस्जिद में दाखिल होना हराम है) (7) फ़िरिश्तों को ईज़ा देने से बचूंगा (मुंह में गिज़ाई रेशे होते हुए नमाज़ में कुरआने पाक पढ़ने से फ़िरिश्तों को ईज़ा होती है)
कुल्ली का तरीका
वुज़ू में इस तरह कुल्ली करनी ज़रूरी है कि मुंह के हर कल पुर्जे और दांतों की तमाम खिड़कियों वगैरा में पानी पहुंच जाए। वुज़ू में तीन मरतबा इस तरह कुल्लियां करना सुन्नते मुअक्कदा है और गुस्ल में एक बार फ़र्ज़ और तीन बार सुन्नत । अगर रोज़ा न हो तो गरगरा भी कीजिये। गोश्त के रेशे वगैरा निकालने ज़रूरी हैं। हां अगर कोई रेशा या छालिया वगैरा का ज़र्रा निकल ही नहीं रहा तो अब इतनी भी सख्ती न फरमाएं कि मसूढ़े ज़ख्मी हो जाएं कि जो मजबूर है वोह मा'जूर है।
खिलाल की तिब्बी हिक्मतें
हमारे प्यारे प्यारे आका صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّم ने आज से 1400 साल से भी ज़ाइद अर्से पहले ही कई अमराज़ से तहफ्फुज़ के लिये खिलाल की अहम्मिय्यत समझा दी। अब सदिय्यों बा'द साइन्सदानों की समझ में भी आ गया। चुनान्चे
खिलाल की हिक्मतें बयान करते हुए अतिब्बा कहते हैं, "खाने के बा'द गिज़ाई अज्ज़ा दांतों और मसूढ़ों के दरमियान फंस जाते हैं, अगर उन को खिलाल के ज़रीए निकाला न जाए तो येह सड़ते हैं जिस से एक खास किस्म का प्लाज़्मा (PLASMA) बन कर मसूढ़ों को मुतवर्रिम करता (या'नी सुजाता) और उस के बा'द दांतों और मसूढ़ों के तअल्लुक को खत्म कर देता है, नतीजतन दांत आहिस्ता आहिस्ता गिर जाते हैं, खिलाल न करने से दांतों में पाएरिया (PHYORRHEA) की बीमारी भी होती है। जिस में मसूढ़ों में पीप हो जाती है जो खाने के साथ पेट में जाती और फिर मोहलिक अमराज जन्म लेते हैं।"
दांतों का कैन्सर
चाय पान के आदी ग़िज़ा की कमी के साथ साथ चाय और पान में भी कमी का जेहन बनाएं येह न हो कि आप ग़िज़ा में कमी करने जाएं और नफ़्से मक्कार आप को भूक मिटाने का झांसा दे कर चाय और पान की कसरत की आफत में फंसा दे। चाय गुर्दों के लिये मुज़िर (या'नी नुक्सान देह) है। पान, गुटका, मेनपूड़ी और खुश्बूदार सोंफ़ सुपारी वगैरा की आदत निकाल देने में ही आफ़िय्यत है। जो लोग इन का कसरत से इस्ति'माल करते हैं उन को मसूढ़ों, मुंह और गले के कैन्सर का अन्देशा रहता है। ज़ियादा पान खाने वालों का मुंह अन्दर से लाल हो जाता है, अगर मसूढ़ों में खून या पीप हो गया तो उन को नज़र नहीं आएगा और पेट में जाता रहेगा। चूंकि एक अर्से तक पीप निकलता रहता है मगर दर्द बिल्कुल नहीं होता लिहाजा उन को शायद मा'लूम भी उस वक़्त होगा जब खुदा न ख्वास्ता किसी खतरनाक बीमारी ने जड़ पकड़ ली होगी !
नक़्ली कथ्थे की तबाह कारिया
हमारे यहां गालिबन कथ्थे की पैदावार नहीं होती, लिहाजा दौलत के
हरीस अपाद जिन्हें किसी की दुन्या और अपनी आखिरत के बरबाद होने की कोई फ़िक्र नहीं होती वोह मिट्टी में चमड़ा रंगने का रंग मिला कर उसी मिट्टी को कथ्था कह कर बेचते हैं! और यूं बेचारे पान खोर गन्दी मिट्टी खा कर तरह तरह के अमराज़ का शिकार और सख्त बीमार हो कर तबाही के गार में जा पड़ते हैं। जानबूझ कर नक़्ली कथ्था हरगिज़ इस्ति' माल न फरमाएं। नक्ली कथ्थे के ताजिर और नक़्ली कथ्थे वाला पान बेचने वाले इस फे'ल से सच्ची तौबा करें नीज़ जान बूझ कर मिट्टी खाने वाले भी बाज़ आएं। मिट्टी के बारे में शई मस्अला येह है, "मा 'मूली मिक्दार में मिट्टी खाने में हरज नहीं मगर हृद्दे ज़रर तक या 'नी नुक्सान देह मिक्दार में खाना हराम है।"
)364/1 ،روالتار, बहारे शरीअत, 1/418, हिस्सा: 2(
दांतों में खून आने के अस्बाब
बा'ज़ लोगों को मिस्वाक करने से खून आता है बल्कि ऐसों का खून खाने के साथ पेट में भी जाता होगा। इस का एक सबब पेट की खराबी भी होता है। ऐसे मरीज़ को क़ब्ज़ वगैरा का इलाज करना ज़रूरी है। वज़्नी और बादी ग़िज़ाओं से परहेज़ करे और खाना भूक से कम खाए, बे वक़्त कोई चीज़ न खाए। दूसरा सबब येह है कि दांतों की सफाई में ला परवाही की वजह से गिज़ाई अज्जा दांतों और मसूढ़ों के दरमियान जम्अ हो कर चूने की तरह सख्त हो कर जम जाते हैं, डॉक्टरी ज़बान में इस को टाटर (TATAR) बोलते हैं, इस लिये दांतों के डॉक्टर से रुजू कीजिये अगर नेक तबीअत डॉक्टर होगा और कोई माने न हुवा तो एक ही वक़्त में तमाम दांतों की सफाई (SCALING) कर देगा। वरना चन्द बार धक्के खिला कर थोड़ा थोड़ा काम कर के ज़ियादा पैसे निकलवाएगा !
صَلُّوا عَلَى الْحَبِيبِ صَلَّى اللهُ عَلَى مُحَمَّد
मिस्वाक करना सुन्नत है" के 14 हुरूफ़ की निस्बत से मिस्वाक के 14 मदनी फूल
येह मदनी फूल "फ़ैज़ाने सुन्नत" जिल्द अव्वल और रिसाला "मिस्वाक शरीफ के फ़ज़ाइल" से जमा कर के पेश किये जा रहे हैं।
(1) मिस्वाक पीलू या जैतून या नीम वगैरा कड़वी लकड़ी की हो, मिस्वाक की मोटाई छुग्लिया या'नी छोटी उंगली के बराबर हो (2) मिस्वाक एक बालिश्त से ज़ियादा लम्बी न हो वरना उस पर शैतान बैठता है (3) इस के रेशे नर्म हों कि सख्त रेशे दांतों और मसूढ़ों के दरमियान खुला (GAP) का बाइस बनते हैं (4) मिस्वाक ताज़ा हो तो खूब (या'नी बेहतर) वरना कुछ देर पानी के गिलास में भिगो कर नर्म कर लीजिये (5) तबीबों का मश्वरा है कि मिस्वाक के रेशे रोज़ाना काटते रहिये कि रेशे उस वक़्त तक कारआमद रहते हैं जब तक उन में तल्खी बाकी रहे (6) दांतों की चौड़ाई में मिस्वाक कीजिये (7) जब भी मिस्वाक करनी हो कम अज़ कम तीन बार कीजिये, हर बार धो लीजिये (8) मिस्वाक सीधे हाथ में इस तरह लीजिये कि छुग्लिया या'नी छोटी उंगली इस के नीचे और बीच की तीन उंग्लियां ऊपर और अंगूठा सिरे पर हो, पहले सीधी तरफ के ऊपर के दांतों पर फिर उल्टी तरफ़ के ऊपर के दांतों पर फिर सीधी तरफ नीचे फिर उल्टी तरफ़ नीचे मिस्वाक कीजिये (9) चित लेट कर मिस्वाक करने से तिल्ली बढ़ जाने और (10) मुठ्ठी बांध कर करने से बवासीर हो जाने का अन्देशा है (11) मिस्वाक वुजू की सुन्नते कुब्लिया है (या'नी मिस्वाक वुजू से पहले की सुन्नत है वुजू के अन्दर की सुन्नत नहीं लिहाज़ा वुजू शुरू करने से कब्ल मिस्वाक कीजिये फिर तीन तीन बार दोनों हाथ धोएं और तरीके के मुताबिक वुजू
मुकम्मल कीजिये) अलबत्ता सुन्नते मुअक्कदा उसी वक़्त है जब कि मुंह में बदबू हो।
(फ़्तावा रविय्या, 1/837, माखूज़न)
औरतों के लिये मिस्वाक करना बीबी आइशा की सुन्नत है (12) "मल्फूज़ाते आ'ला हज़रत" में है: "औरतों के लिये मिस्वाक करना उम्मुल मुअमिनीन हज़रते आइशा सिद्दीका رَضِيَ اللَّهُ عَنْهَا की सुन्नत है लेकिन अगर वोह न करें तो हरज नहीं। इन के दांत और मसूढ़े ब निस्बत मर्दों के कमज़ोर होते हैं, (इन के लिये) मिस्सी या'नी दन्दासा काफी है।" (मल्फूज़ाते आ'ला हज़रत, स. 357)
जब मिस्वाक ना क़ाबिले इस्ति'माल हो जाए
(13) मिस्वाक जब ना काबिले इस्ति'माल हो जाए तो फेंक मत दीजिये कि येह आलए अदाए सुन्नत है, किसी जगह एहतियात से रख दीजिये या दफ़्न कर दीजिये या पथ्थर वगैरा वज़्न बांध कर समुन्दर में डुबो दीजिये। (तफ्सीली मा'लूमात के लिये मक्तबतुल मदीना की बहारे शरीअत जिल्द अव्वल सफ़हा 294 ता 295 का मुतालआ फरमा लीजिये)
क्या आप को मिस्वाक करना आता है ?
(14) हो सकता है आप के दिल में येह खयाल आए कि मैं तो बरसों से मिस्वाक इस्ति' माल करता हूं मगर मेरे तो दांत और पेट दोनों ही खराब हैं! मेरे भोलेभाले इस्लामी भाई ! इस में मिस्वाक का नहीं आप का अपना कुसूर है। मैं (सगे मदीना غفى عنهُ( इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि आज शायद हज़ारों में से कोई एकआध ही ऐसा हो जो सहीह उसूलों के मुताबिक मिस्वाक इस्ति'माल करता हो, हम लोग अक्सर जल्दी जल्दी दांतों पर मिस्वाक मल कर वुजू कर के चल पड़ते हैं या'नी यूं कहिये कि हम मिस्वाक नहीं बल्कि "रस्मे मिस्वाक" अदा करते हैं !
दांतों की हिफ़ाज़त के लिये चार मदनी फूल
(1) कोई भी चीज़ खाने या चाय वगैरा पीने के बा'द तीन बार इस तरह कुल्ली करें कि हर बार पानी को मुंह में एकआध मिनट तक अच्छी तरह जुम्बिशें देने या'नी हिलाने के बा'द उगलें (2) जब भी मौक़ मिले मुंह में कुल्ली भर लें और चन्द मिनट तक हिलाते रहें फिर उगल दें। येह अमल रोज़ाना मुख्तलिफ अवकात में चन्द बार कीजिये। (3) अगर मज़्कुरा अन्दाज़ पर कुल्लियों के लिये सादे पानी के बजाए नमक वाला नीम गर्म पानी इस्ति' माल किया जाए तो मजीद मुफीद है। अगर पाबन्दी से करेंगे तो إِنْ شَاء الله दांतों के दरमियान अटके हुए ग़िज़ा के अज्ज़ा धुल धुल कर निकलते रहेंगे, न वोह मसूढ़ों में ठहरेंगे कि सड़ें, إن شاء الله इस तरह करने से मसूढ़ों में खून की शिकायत भी न होगी । (4) जैतून शरीफ का तेल दांतों पर मलने से मसूढ़े और हिलते हुए दांत मज़बूत होते हैं।
मुंह की बदबू का इलाज
अगर मुंह में बदबू आती हो तो हरा धनिया चबा कर खाइये नीज़
गुलाब के ताज़ा या सूखे हुए फूलों से दांत मांजने से भी شَاء الله दूर हो जाएगी।
हां अगर पेट की खराबी की वजह से बदबू आती हो तो "कमखोरी" की सआदत
हासिल कर के भूक की बरकतें लूटने से اِنْشَاء الله टांगों और बदन के मुख्तलिफ
हिस्सों के दर्द, क़ब्ज़, सीने की जलन, मुंह के छाले, बार बार होने वाले नज़्ले
खांसी और गले के दर्द मसूढ़ों में खून आना वगैरा बहुत सारे अम्राज़ के साथ
साथ मुंह की बदबू से भी जान छूट जाएगी। भूक से कम खाने में 80 फीसद
अमराज़ से बचत हो सकती है। (तफ्सीली मा' लूमात के लिये फ़ैज़ाने सुन्नत के बाब
"पेट का कुफ्ले मदीना" का मुतालआ फरमाइये) अगर नफ़्स की हिर्स का इलाज हो जाए तो कई अमराज़ खुद ही खत्म हो जाएं।
रज़ा नफ़्स दुश्मन है दम में न आना
कहां तुम ने देखे हैं चंदराने वाले
मुंह की बदबू का मदनी इलाज
येह दुरूद शरीफ मौक़अ ब मौक़ एक ही सांस में ग्यारह मरतबा पढ़ लीजिये। मुंह की बदबू जाइल हो जाएगी : اللَّهُمَّ صَلِّ وَسَلَّمْ عَلَى النَّبِيِّ الطَّاهِرِ
एक सांस में पढ़ने का तरीका
एक ही सांस में पढ़ने का बेहतर तरीका येह है कि मुंह बन्द कर के आहिस्ता आहिस्ता नाक से सांस लेना शुरू कीजिये और जितना मुम्किन हो उतनी हवा फेफड़ों में भर लीजिये। अब दुरूद शरीफ पढ़ना शुरू कीजिये । चन्द बार इस तरह मश्क करेंगे तो सांस टूटने से कब्ल اِنْشَاء الله मुकम्मल ग्यारह बार दुरूद शरीफ पढ़ने की तरकीब बन जाएगी। मज़्कूरा तरीके पर नाक से गहरा सांस ले कर मुम्किन हद तक रोक रखने के बा'द मुंह से खारिज करना सिहृद्दत के लिये इन्तिहाई मुफीद है। दिन भर में जब मौक़अ मिले बिल खुसूस खुली फ़ज़ा में रोज़ाना चन्द बार तो ऐसा कर ही लेना चाहिये। मुझे (सगे मदीना غْفِيَ عَنْهُ को) एक सिन रसीदा हकीम साहिब ने बताया था कि मैं सांस लेने के बा'द (आधे घन्टे तक या कहा) दो घन्टे तक हवा को अन्दर रोक लेता हूं और इस दौरान अपने विर्दो वज़ाइफ भी पढ़ सकता हूं। बकौल उन हकीम साहिब के सांस रोकने के ऐसे ऐसे मश्शाक (या'नी मश्क़ कर के माहिर हो जाने वाले लोग) भी दुन्या में होते हैं कि सुब्ह सांस लेते हैं तो शाम को निकालते हैं !
पांच खुश्बूदार मुंह
सरकारे मदीना صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّم का एक अज़ीम मो'जिज़ा मुलाहज़ा फरमाइये जिस की बरकत से पांच खुश नसीब सहाबिय्यात رَضِيَ اللَّهُ تَعَالَ عَنْهُنَّ मुंह हमेशा के लिये खुश्बूदार हो गए। चुनान्चे हज़रते उमैरा बिन्ते मस्ऊद अन्सारिय्या رَضِيَ اللَّهُ عَنْهَا फरमाती हैं कि हम पांच बहनें हुजूरे अकरम, صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَإِلِيهِ وَسَلَّم की खिदमते मुअज़्ज़म में बैअत करने के लिये हाज़िर हुईं । हुजूर صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّم उस वक़्त क़दीद (खुश्क किया हुवा गोश्त) तनावुल फरमा रहे थे। हुजूर صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّم ने एक पारए कदीद (या'नी क़दीद का टुकड़ा) चबा कर नर्म कर के हम को अता फरमाया तो हम में से हर एक ने थोड़ा थोड़ा कर के खा लिया (इस की बरकत से) मरते दम तक हमारे मूंहों से हमेशा खुश्बू ही आई।
मूसलाधार बारिश
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! दा'वते इस्लामी के दीनी माहोल से
हर दम वाबस्ता रहिये, सुन्नतों भरे इज्तिमाअ में शिर्कत फ़रमाया कीजिये। إِنْ شَاءَ الله आखिरत की बे शुमार भलाइयां हाथ आएंगी बल्कि दुन्यवी परेशानियां भी दूर होंगी, आशिकाने रसूल के कुर्ब में شَ الله दुआएं भी क़बूल होंगी। मुसल्मानों के चौथे खलीफा, हज़रते मौलाए काएनात, अलिय्युल मुर्तजा, शेरे खुदा رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ से रिवायत है कि मक्की मदनी सरकार صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّم ने इर्शाद फ़रमाया : الدُّعَاءُ سِلاحُ الْمُؤْمِنِ وَعِبَادُ الدِّينِ ، وَنُورُ السَّمَوَاتِ وَالْأَرْضِ (مسند ابی یعلی، 215/1 ، حدیث : 435) या'नी "दुआ मोमिन का हथियार है और दीन का सुतून है और ज़मीनो आस्मान का नूर है।" बिल खुसूस सफर में दुआ रद नहीं की जाती और अगर आशिकाने रसूल का मदनी क़ाफ़िला हो फिर तो क्या ही बात है! चुनान्चे दा'वते इस्लामी के
आशिक़ाने रसूल का सुन्नतें सीखने सिखाने का एक मदनी काफिला सफ़र पर था। मक़ामी लोगों ने दुआ की दरख्वास्त करते हुए बताया कि यहां के मुसल्मान अर्सए दराज़ से बरसात की ने'मत से महरूम हैं। चुनान्चे मदनी क़ाफ़िले वालों ने इज्तिमाई दुआ की तरकीब की। काफी मुसल्मान शरीक हुए, दिन का वक़्त था, धूप निकली हुई थी, आशिकाने रसूल ने गिड़गिड़ा कर रिक़्क़त अंगेज़ दुआ शुरू कर दी, الْحَمْدُ لِلَّهِ देखते ही देखते अब्रे रहमत छा गया, घन्घोर घटाएं उमंड आईं और मूसलाधार बारिश बरसने लगी ! खुशी के ना'रे बुलन्द होने लगे, लोग बारिश में शराबोर हो गए, दा 'वते इस्लामी की महब्बत और मदनी क़ाफ़िले वाले आशिकाने रसूल की अक़ीदत से हाज़िरीन के कुलूब मालामाल हो गए, दा'वते इस्लामी वालों पर अल्लाह पाक के इस अज़ीम करम का खुली आंखों से मुशाहदा करने के सबब काफी इस्लामी भाई दा' वते इस्लामी के दीनी माहोल से वाबस्ता हो गए और वहां दा'वते इस्लामी के दीनी काम की धूमधाम हो गई।
क़ाफ़िले में ज़रा,
मांगो आ कर दुआ
होंगी खूब बारिशें क़ाफ़िले में चलो तुम को सुन्नत के दें क़ाफ़िले में चलो
आशिकाने रसूल ले लो जो कुछ भी फूल
صَلُّوا عَلَى الْحَبِيبِ صَلَّى اللَّهُ عَلَى مُحَمَّد
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