” kah do ki meree namaaz meree qurabaanee ‘yaani’ mera jeena mera marana allaah ke lie hai jo sab aalamon ka rab hai .”
"Say that my prayer is my sacrifice, that is, my life, my death is for Allah who is the Lord of all worlds."
[Qur'an 6:162]” कह दो कि मेरी नमाज़ मेरी क़ुरबानी ‘यानि’ मेरा जीना मेरा मरना अल्लाह के लिए है जो सब आलमों का रब है ।”[कुरआन 6:162]
क़ुरबानी – एक बाप और बेटे की (हज़रते इब्राहीम और इस्माईल अलैहे सलाम) हज़रते इब्राहीम और इस्माईल अलैहे सलाम की कुर्बानी का अज़ीम वाक़िअ
Qurbani – Ek Baap aur Betey Ki (Hazrate Ibrahim aur Ismayeel Alaihay Salam)Hazrate Ibrahim aur Ismayeel Alaihay Salam ki Qurbaani ka Azeem Waqia
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हज़रत इब्राहिम (अलैहे सलाम) ने एक रात ख़्वाब में देखा की कोई शाखा
गैब से आवाज देता है और कहता है की: “ऐ इब्राहिम…! तुम्हें अल्लाह का हुक्म है की अपने बेटे को अल्लाह की राह में ज़िबा कर दो।”
नबी इब्राहिम अलैही सलाम के नंगे में तफ़सीली जानकारी के लिए हिक़ायत के सीरीज़ का मुतला करे।
चंकी, नबियों का ख़्वाब सच्चा और "वही" की क़िस्म से होता है इस्लिये आप अपने महबूब बेटे हज़रत इस्माइल (अलैहय सलाम) को अल्लाह ताला की राह में क़ुर्बान करने को तैय्यर हो गए।
चंकी, हज़रत इस्माइल (अलैहय सलाम) अभी कुम-उमर वे, इस्लिये अपने उनसे इतना इतना कहा की बेटा रस्सी और एक चुरी ले कर मेरे साथ चलो। चुनांचे, अपने बेटे को लेकर आप एक जंगल में पहले।
हज़रत इस्माइल (अलैहे सलाम) ने पुचा, अब्बाजान! आप ये चुरी और रस्सी ले कर क्यों चलते हैं?
फरमाया "आगे चल कर एक कुर्बानी ज़बाह करेंगे"
फिर आगे चल कर हजरत इब्राहिम (अलैहे सलाम) ने साफ-साफ बयान फरमा दिया और कहा,
"बीटा! मैं अल्लाह तआला की राह में तुम्हे ही ज़बाह करने आया हूं, मैंने ख्वाब में देखा है की तुम्हें ज़बाह कर रहा हूं। बीटा! ये अल्लाह तआला की मर्ज़ी है, बता तुम्हारी मर्ज़ी क्या है?”
हज़रत इस्माइल (अलैहे सलाम) ने जवाब दिया:
"अब्बाजान! जब अल्लाह तआला की मर्ज़ी यही है तो फिर मेरी मर्ज़ी का क्या देखा? आपको जिस बात का हक हुआ है, आप वो किजिये! इंशा;अल्लाह मैं सबर कर के दिखूंगा!"
बेटे का ये ज़ुर्रत आमेज़ जवाब सुन कर हज़रत इब्राहिम (अलैहय सलाम) बड़े ख़ुश हुए और अपने बेटे को अल्लाह तआला की राह में ज़िबा करने पर तैय्यर हो गए!
जब आपके अपने बेटे को माथे के बाल लिटाया और गढ़न पर चूड़ी राखी और उसे चले तो चूरी ने गढ़न-ए-इस्माइल को बिलकुल न काटा!
अपने और ज़ोर से चुरी चलाई तो आवाज़ आई: “बस ऐ इब्राहिम! तुम हकम-ए-आहि की तमिल कर चुके और इस सख्त इम्तिहान में खरे उतरे।”!
आपने मिट्टी कर देखा तो एक डब्बा पास ही खड़ा था और आपसे कह रहा था कि हज़रत इस्माइल (अलैहै सलाम) की जग मुझे ज़बाह किजिये! और इन हटा दिजिये, चुनांचे हज़रते इब्राहिम (अलैहय सलाम) ने उस दुम्बे को ज़िबाह फ़र्मा दिया।!
हज़रत इस्माइल (अलैहे सलाम) उस बैठे और इस इम्तिहान में कामयाब हो गए!
📕 अल-कुरान: पैरा-23, कुतुब-ए-तफ़सीर
सावल: क्या कुर्बानी से पहले अकीका जरुरी है?
जवाब: कुर्बानी से पहले अकीका हो ऐसा कोई जरुरी नहीं।
अगर कुर्बानी करने वाले के पास वुसत हो तो कुर्बानी के साथ अकीका भी कर सकता है।
बशारते के कुर्बानी और अकीका दोनो का जंवर अलग होना चाहिए ताकि दोनो सुन्नतें पूरी हो जाएं।
लेकिन अगर माली वसत ना हो तो बहरहाल कुर्बानी का वक्त है वजाह से कुर्बानी देना ही अफजल है।
और इस में कोई हरज की बात नहीं के बचपन में हम का अक़ीक़ा नहीं हुआ था कि इतनी अकीक़ा सुन्नत ए मुअक्कादह है वजाह से जरूरी नहीं है के पहले दे बग़ैर एक देना वाजिब है तबी कुर्बानी है है।
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