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बदन की सलामती , गरीबी और अज़ाबे क़ब्र से बचने की दुआ - badan ki salamati garibi aur ajab kabr se bachne Ki Dua


बदन की सलामती , गरीबी और अज़ाबे क़ब्र से बचने की दुआ  اللَّهُمَّ عَافِنِي فِي بَدَنِي ،  اللَّهُمَّ عَافِنِي فِي سَمْعِي ، اللَّهُمَّ عَافِنِي فِي بَصَرِي ،  لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ ، اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ الْكُفْرِ ، وَالْفَقْرِ ، اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ عَذَابِ الْقَبْرِ ، لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَअल्लाहुम्म आफ़िनी फ़ी बदनी , अल्लाहुम्म आफ़िनी फ़ी सम्ई , अल्लाहुम्म आफ़िनी फ़ी बसरी , लाइलाह इल्ला अन्त , अल्लाहुम्म इन्नी अऊज़ुबिक मिनल् कुफ्रि , वल् फ़क़रि व अऊजुबिक मिन् अज़ाबिल् क़ब्रि , ला इलाहा इल्ला अन्त,ऐ अल्लाह मुझे मेरे बदन में आफियत ( तंदुरूस्ती ) दे । ऐ अल्लाह मुझे मेरे कानों मे आफियत दे । ऐ अल्लाह मुझे मेरी आँखों में आफियत दे । तेरे सिवा कोई इबादत के लायक नहीं । ऐ अल्लाह मैं कुफ्र और फक़्र ( गरीबी ) से तेरी पनाह चाहता हूँ । और क़ब्र के अज़ाब से तेरी पनाह चाहता हूँ । तेरे सिवा कोई इबादत के लायक नहीं ।  रसूलुल्लाह में यह दुआ हर रोज़ सुबह और शाम के वक़्त तीन तीन बार पढ़ा करते थे ।

 

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