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Fatiha Ka Aasan Tarika

Fatiha Ka Aasan Tarika | Esal e Sawab Aur Fatiha ka Tarika | Fatiha Me Kya Kya Padha Jata Hai - फातिहा में क्या क्या पढ़ा जाता है?

  •  फातिहा का आसान तरीका / फातिहा में क्या पढ़ा जाता है?
  • भाइयों फातिहा का आसान तरीका यूँ है कि-
  • सबसे पहले बावुजू क़िबला रुख होकर बैठ जाए
  • मुसल्ल्ला बिछाए
  • इसके बाद जिस भी तबर्रुक (खाने की चीज) पर नियाज या फातिहा देना चाहते है
  • उस तबर्रुक यानी खाने की चीज को सामने रखे
  • फातिहा देने से पहले अगरबत्ती जला दें
  • इसके बाद चिरागी (पैसा) भी तबर्रुक के साथ रखे
  • जब फातिहा ख़त्म हो जायेगी उसके बाद चिरागी का पैसा किसी गरीब फ़क़ीर को देना है
  • चिरागी का पैसा तबर्रुक के पास रखे
  • फिर फातिहा देना इस आसान तरीका से पूरा करें
  • अब जो भी लिखा जा रहा है उसे पढ़े –
  • पढ़े – “अलहमदु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन वस्सलातु वस्सलामु अला आलिहि व असहाबिहि अजमईन”
  • एक बार आयतल कुर्सी पढ़े
  • सुरह मुत्ततका : एक बार पढ़े
  • एक बार सुरह काफेरुन पढ़े
  • सुरह अहद तीन मार्तबा पढ़े
  • सूरह फलक, सुरह नास, एक एक बार पढ़े
  • सुरह फ़ातिहा एक बार पढ़े
  • सूरह अल बाकारा एक बार पढ़े
  • दुरुदे ताज एक बार पढ़े
  • इसके बाद अल्लाह से दुआ मांगे
  • दुआ मांगने के बाद फातिहा का तरीका मुकम्मल हो जाता है
सबसे पहले वज़ु बना ले बिना वज़ु के फ़ातिहा नहीं देना चाहिए उसके बाद ये आयते पढे :
अलहमदु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन,वस्सलातु वस्सलामु अला आलिहि व असहाबिहि अजमईन

01 आयतल कुर्सी :

bismillah

अल्लाहु ला इला-ह इल्ला हु-वल हय्युल क़य्यूम ला तअखुजुहु सि-नतुव्वला नौम लहू मा फिस्समावाति वमा फ़िल अरज़ि मन ज़ल्लज़ी यश-फउ इन-दहू इल्ला बि इज़निही यअ-लमु मा बै-न ऐदीहिम वमा खल-फहुम् वला युहीतू-न बिशैइम्मिन इअलमिही इल्ला बिमा शा-अ, वसि-अ कुर्सिय्युहुस्समावाति वल-अर-द वला यऊदुहू हिफ़जुहुमा वहु-वल अलिय्युल अज़ीम

اللَّهُ لاَ إِلَهَ إِلاَّ هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ لاَ تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلاَ نَوْمٌ لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ مَنْ ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِنْدَهُ إِلاَّ بِإِذْنِهِ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَلاَ يُحِيطُونَ بِشَيْءٍ مِنْ عِلْمِهِ إِلاَّ بِمَا شَاءَ وَسِعَ كُرْسِيُّهُ السَّمَاو ;َاتِ وَالأَرْضَ وَلاَ يَئُودُهُ حِفْظُهُمَا وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ

02 : सुरह मुत्ततका :

अलहाको मुत्ततका सुरो हत्ता ज़ूर-तो-मुल मक़ाबिर कल्ला सोओफ़ा तआलमुना सुम्मा कल्ला सोओफ़ा तआलमुन । कल्ला लओ तआलमुना इलमल यक़ीन । ल-तरा बुन्नल ज़हीमा सुम्मा ल-तरा बुन्न नहा ऐ-लनयक़ीन ।
सुम्मा ल-तूस अनुन्ना एओमायेजिन अनिन्न नईम ।

أَلْهَاكُمُ التَّكَاثُرُ حَتَّىٰ زُرْتُمُ الْمَقَابِرَ كَلَّا سَوْفَ تَعْلَمُونَ ثُمَّ كَلَّا سَوْفَ تَعْلَمُونَ كَلَّا لَوْ تَعْلَمُونَ عِلْمَ الْيَقِينِ لَتَرَوُنَّ الْجَحِيمَ ثُمَّ لَتَرَوُنَّهَا عَيْنَ الْيَقِينِ ثُمَّ لَتُسْأَلُنَّ يَوْمَئِذٍ عَنِ النَّعِيمِ

03 सुरह काफेरुन :


कुल्लीया अय्योहल काफ्फीर्ररुन ला आ बुदू मा ता आबुदोन वल्ला अन्नतुम आबीदोना मा आ बुद । वल्ला अन आबिदुम मा आ बद तुम । वल्ला अन्नतुम आबीदोना मा आ बुद । लकुमं दीनोकुमं वलिय द्दीन ।

04 सुरह अहद तीन मार्तबा :

qul hu allah hu ahad

कुल हुवल्लाहु अहद अल्लाहुस-समद लम यलीद वा लम युलद वा लम यकुल्लाहू कुफुवान अहद

कुल हुवल्लाहु अहद अल्लाहुस-समद लम यलीद वा लम युलद वा लम यकुल्लाहू कुफुवान अहद

कुल हुवल्लाहु अहद अल्लाहुस-समद लम यलीद वा लम युलद वा लम यकुल्लाहू कुफुवान अहद

05 सुरह फलक :

QUL AUZU BI RABBIN FALAK - Fatiha Ka Aasan Tarika

कूल आऊजू बी रब्बिल फलक मिन शरर रीमा खलक व मिन शररी गासिकिन इज़ा वकब वा मिन शररीन नफ़्फ़ा साती फिल उकद वा मिन शररी हासीदिन इज़ा हसद ।

06 सुरह नास :

QUL A’UZU BI RABBIN NAS

कूल आऊज़ू बी रब्बिन्न नास । मलिकिन नास । इलाहीन नास । मिन शर्रील वस्वासिल खन्नास । अल्लज़ी युवस्विसो फी सुदुरिन्न नासी मिनल जिन्नती वन्नास ।

07 सुरह फ़ातिहा :

surah fatiha - Fatiha Ka Aasan Tarika

अलहम्दो लिल्लाहि रब्बिल आलमीन अर्रहमानिर्रहीम मालिकीयोमिद्दीन इय्या क न अबुदु व इय्या क नस्तईन इहीदनस्सिरातल मुस्तकीम सीरतलल्लजी न अन अम त अलैहिम गैरिल म मग्दुबी अलैहिम व लदव्वाल्लीन

08 सुरह अल बाकारा :

अलिफ लाम मीम0 ज़ालेकल किताबो लारयब फ़ीह हुदल्लिल मुक्तक़ीनल लज़ीना यूमेनूना बिल ग़ैबे व यूक़ीमुनस्सलाता व मिम्मा रज़क़ना हुम युनफ़ेक़ून0 वल लज़ीना यूमिनूना बीमा उनज़ेला इलैका वमा उनज़ेला मिन क़बलिक व बिल आख़ेरते हुम यूक़ेनून0 उलाइएका अला हुदम्मिर्रब्बे हिम, व ओलाएका हुमुल मुफ़लेहून0

व इलाहोकुम इलाहुवं वाहेदुन ला इलाह इल्ला होवर रहमानुर रहीम0 इन्ना रहमतल लाहे क़रिबुम मिनल मोहसेनिन0 वमा अरसलनाका इल्ला रहमतल-लिल आलमीन0 मा काना मुहम्मदुन अबॉ अहदिम्मि रेज़ालेकुम वला किर्रसूल्लाहे व ख़ातमन नबीयीन व कानाल्लाहो बे-कुल्ले शयइन अलीमा0 इन्नल्लाह व मलायकताहु यूसल्लूना अलन्नबी या अय्योहल लज़ीना आमनु सल्लू अलही बसल्लिमो तसलीमा0 अल्ला हुम्मा सल्लेअला सय्यादिना वा मौलना मुहम्मदिन निन नवी उम्मिये बाअला आलैही बा असहाबिही बरिक वसल्लिम अलय सला तउ वस सला मुन अलय का या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो ताआला अलय हे बसल्लम0

(इसके बाद दुरुदे ताज अगर पड़ना चाहे हो बेहतर हे जिससे फ़ातिहा की शान बड़ जाएगी)

बिस्मिल्ला

सुबहाना रब्बेका रब्बिल इज़्ज़ते अम्मा या सिफूना बससलामुन अलल मुरसलीन0 वल हमदु लिल्लाही रब्बिल आलामीन ।

अलफ़ातेहा

इसके बाद दुआ पड़े-

या अल्लाह अभी अभी क़ुरान की आयतें पड़ी गयी सिरनी का एहतेराम किया गया और या अल्लाह सभी ने तेरी महफ़िल में हाज़री दी और जो कुछ तेरी बरगाह में पढ़ा या मेरे मौला इसमें जो भी ग़लतियाँ, कोताहिया, ख़ामियाँ जाने अनजाने में या जान बूझकर हो गई हो मौला तु माफ़ करने वाला हे
तु रहीम हे
तु करीम हे
मेरे मौला उन सभी ग़लतियों को माफ़ फ़रमा दे
या अल्लाह इस सब का सवाव तेरी बरगाह मे पेश करता हु क़बूल अता फ़रमा
क़बूल कर के या अल्लाह इस सब का सबाब दो जहाँ के आका वा मौला सरकारे मुस्तफ़ा मुहम्मद
सल्लल्लाहो ताआला अलय हे बसल्लम की बरगाहे रिशालत में पेश करता हु क़बूल फ़रमा

क़बूल कर के या अल्लाह इस सब का सबाब कुल फ़ाये राशेदीन तावाईन तवा-तावाईन मलाइक मुक़र्रबीन इम्मिल मुहतदीन अजबाज़े मुतह्हरात आप सभों की मुक़द्दस बरगाह में इस सब का सबाब पेश करता हु क़ुबूल अता फ़रमा

क़बूल कर के या अल्लाह इस सब का सबाब कुल अम्बिया एे किराम एक लाख चोबीस हज़ार कमोवेश दो लाख चोबीस हज़ार जो भी तशरीफ़ लाये आप सभों की मुक़द्दस बरगाह में इस सब का सबाब पेश करता हु क़ुबूल अता फ़रमा

क़बूल कर के या अल्लाह इस सब का सबाब कुल ख़ानदाने चिश्तिया कुल ख़ानदाने क़दरिया कुल ख़ानदाने सोहरबरदिया जमालिया क़ुदसिया रिज़्बिया रब्बनिया मनज़ूरिया निजामिया आप सभों की मुक़द्दस बरगाह में इस सब का सबाब पेश करता हु क़ुबूल अता फ़रमा

क़बूल कर के या अल्लाह इस सब का सबाब ( जिस के नाम का त्योहार है और जिसकी रूह को इसका सवाब देना हैं, उनका नाम ) हुज़ूर के बसीले से पेश करता हु क़ुबूल फ़रमा.

इसके बाद जो भी और दुआ माँगनी हो माँगकर पड़े!
सुब्बहाना रब्बेका रब्बिल इज़्ज़ते अम्मा या सीफ़ून वास्साला मुन अलल मुरसलीन बल्हमदों लिल्लाहि रब्बिल आलामीन

1. अगर ईद हैं तो जेसी दुआ है वेसी ही पड़े

2. अगर बकरई ईद हैं तो
हज़रत इसमाईल जमीउल्लाह और इब्राहीम खलीलुल्लाह की बरगाह में पेश करता हु क़बूल आता फ़रमा

3. ईद ऐ मिलाद है तो जेसी दुआ है वेसी ही पड़े

4. 11 वी शरीफ़ में हर आयत को ग्यारह मर्तबा पड़े और साथ में ग्यारह मर्तबा दुरुदे गौसिया भी पड़े

कुर्बानी की दुआ इन हिंदी QURBANI DUA IN HINDI PDF FREE DOWNLOAD कुर्बानी की दुआ हिंदी में जिबह करने की दुआ HINDI लिखी हुई पढ़े


इस्लामिक भाइयों बहनों कुर्बानी का समय यानी ईद उल अज़हा आने को करीब है ऐसे में ईद उल अज़हा पर कुर्बानी बकरा जिबह किया जाता है लेकिन बकरा जिबह से पहले और बाद में दुआ पढ़ी जाती है जिससे कुर्बानी का बकरा हलाल हो जाता है

अगर इस साल आप भी अपने घर पर बकरा की कुर्बानी करने जा रहे है ऐसे में कुर्बानी की दुआ इन हिंदी

हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया
जब तुम ज़िलहिज्ज़ा का चाँद देखो
और तुम में से कोई शख़्स क़ुर्बानी का इरादा रखता हो
तो वह अपने बाल और नाखूनों को (ना काटे) अपने हाल पर रहने दे”
– मुस्लिम 5119

क़ुर्बानी की दुआ
“इन्नी वज्जहतु वजहि य लिल्लज़ी फ़ त रस्मावाति वल अर्दा हनीफँव व् मा अ न मिनल मुशरिकीन इन न सलाती व नुसुकी मह्या य व ममाती लिल्लाहि रब्बिल आलमीन” “ला शरी क लहू व बि ज़ालि क उमिरतु व अ न मिनल मुस्लिमीन * अल्लाहुम्मा ल क व मिन क बिस्मिल्लाहि अल्लाहु अकबर”

कुर्बानी के बाद की दुआ यानी जिबह बाद की दुआ –
अल्लाहुम्मा तकब्बल मिन्नी कमा तकब्बलता मिन ख़लीलिक इबराहीमा अलैहिस्सलामु व हबीबिक मुहम्मदिन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम

क़ुरबानी अगर किसी और की तरफ से हो तो मिन्नी की जगह मीन कहकर उस शख्स का नाम ले !
बहुत सी जगह देखा गया है ! की ज़बह के वक़्त जो भी हज़रात वहा मौजूद होते है !
वो बा आवाज़ बुलंद अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर पढ़ते रहते है ! यह अच्छा तरीका है !
बकरीद पर कुर्बानी उत्तर प्रदेश से लेकर पुरे दुनिया में किया जाता है
ऐसे में कुर्बानी का सुन्नत तरीका क्या है ? क़ुरबानी को लेकर अगर कोई सवाल है तो इसे लेख को पूरा पढ़े
कुर्बानी का तरीका – कुर्बानी की दुआ
कुर्बानी हज़रत इब्राहिम की सुन्नत है जाने कुर्बानी का सुन्नत तरीका
इस्लाम में कुर्बानी के जानवर के हर बाल के बदले में एक नेकी मिलता है।
इसलिए इस्लाम में कुर्बानी को बहुत महत्व दिया जाता है
जानवर को कुर्बानी से पहले अच्छे से खिलाना और पिलाना चाहिए
उसकी हिफ़ाज़त भी करनी चाहिए।
अपने नाम की कुर्बानी अपने हाथ से करना चाहिए याने जिबह करना ।
अगर आप जिबह नहीं कर सकते हैं तो किसी और से भी करवा सकते हैं।
लेकिन कुर्बानी के समय जानवर के पास मौजूद रहना अफ़जल माना जाता है।
जिबह यानी कुर्बानी से पहले जानवर को अच्छी तरह से बांध दें
साथ ही किबला की तरफ मुंह करके सुलाए और जिबह के लिए पहले औजार(चाकू) को खूब तेज़ कर लें।
ज़बह करने वाले भी अपने आप को किबला रुख कर लें और कुर्बानी की दुआ पढ़ें।

कुर्बानी की दुआ 

INNI WAZ JAHTU WAJAHI YA LILLAZI FA TA RASSAMAWATI WAL ARZ HANIFAUV WA MA ANA MINAL MUSHRIQI NA IN NA SALAATI WA NUSUKI WA MAHYA YA WA MAMAATI LILLAHI RABBIL AALMIN। LA SHARIQ LAHU WA BIZALI KA URIRATU WA ANA MINAL MUSLIMIN। ALLAHUMMA MA LA KA WA MIN KA BISMILLAHI ALLAHU AKBAR

إِنِّي وَجَّهْتُ وَجْهِيَ لِلَّذِي فَطَرَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ حَنِيفًا وَمَا أَنَا مِنَ الْمُشْرِكِينَ إِنَّ صَلَاتِي وَنُسُكِي وَمَحْيَايَ وَمَمَاتِي لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ لَا شَرِيكَ لَهُ وَبِذَلِكَ أُمِرْتُ وَأَنَا أَوَّلُ الْمُسْلِمِينَ، بِسْمِ الله الله أَكْبَرُ।

मैंने उस ज़ात की तरफ़ अपना रुख मोड़ा जिसने आसमानों को और जमीनों को पैदा किया, इस हाल में में इब्राहीम में हनीफ़ के दीन पर हूं और मुश्रिको में से नहीं हूँ।

बेशक मेरी नमाज़ और मेरी इबादत और मेरा मरना और जीना सब अल्लाह के लिए है जो रब्बुल आलमीन है, जिसका कोई शरीक नहीं और मुझे इसी का हुक्म दिया गया है और मैं फरमाबरदारों में से हूं। ऐ अल्लाह, यह कुर्बानी तेरी तौफ़ीक़ से है और तेरे लिए है।

बकरीद की कहानी इन हिंदी Bakrid Ki Kahani in Hindi

बकरीद की कहानी इन हिंदी बकरीद की कुर्बानी का बयान बकरे की कुर्बानी का बयान


बकरीद, जिसे ईद-उल-अजहा या ईद-ए-कुर्बान के नाम से भी जाना जाता है, इस्लामी धर्म के अनुयायों द्वारा मनाई जाने वाली महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस दिन मुसलमान लोग अपनी पूजा और नमाज़ के बाद बकरी को बलिदान करते हैं, जिसकी यात्रा दिल्ली के निजामुद्दीन में स्थित हज़रत निजामुद्दीन दरगाह से शुरू होती है और पुरे देश में व्यापक रूप से मनाई जाती है।

बकरीद की कहानी
बकरीद की कहानी मुसलमान धर्मग्रंथ कुरान में मौजूद है। यह कहानी पैगंबर इब्राहिम (अब्राहम) के ऊपर आधारित है। इब्राहिम भक्ति और विश्वास के प्रतीक माने जाते हैं।

कहानी के अनुसार, ईश्वर ने एक सपने में इब्राहिम को दिखाया कि वह अपने पुत्र इस्माईल की बलिदान करने के लिए तैयार हो जाएं। इब्राहिम, जो अपने ईश्वर में अटूट विश्वास रखते थे, उस संकेत को समझ गए और तैयार हुए।

इस परीक्षा में उनके बेटे इस्माईल भी स्थिर रहे और वे तय किए गए

स्थान पर पहुंचे। इब्राहिम ने अपने बेटे को अपने मन की बात बताई और उन्हें अपने ईश्वर में अटूट विश्वास के साथ उनकी बलिदानी आवश्यकता का पालन करने की कहा। इस्माईल भी इस बात को स्वीकार कर लिया और बिना किसी संदेह के तैयार हो गए।

जब इब्राहिम ने अपने बेटे को बलिदान करने के लिए तैयार कर दिया, तो ईश्वर ने अचानक एक बकरी को दिखाया और कहा कि यह बकरी इस्माईल की बजाय इसे बलिदान कर दो। इब्राहिम और इस्माईल ने अपने ईश्वर की आदेश का पालन किया और बकरी को बलिदान कर दिया।

यह कहानी मुसलमान समुदाय में अत्यंत महत्वपूर्ण है,
जो ईश्वर में विश्वास की महत्ता को दिखाती है। बकरीद का यह दिन इस्लामी समुदाय में
एक पवित्र त्योहार के रूप में मनाया जाता है,
जहां मुसलमान लोग भगवान के सामर्पण की उपासना करते हैं
और दूसरों के साथ अपनी खुशी और धन्यवाद साझा करते हैं।
यह कहानी धर्म, विश्वास, और समर्पण के महत्व को प्रकट करती है
और मुसलमान समुदाय के लोगों को ईश्वर में अटल विश्वास की महत्ता को याद दिलाती है।
यह एक पवित्र कथा है जो समाज में शांति, समरसता, और समर्पण को प्रोत्साहित करती है।

कुर्बानी, ईस्लामी धर्म में बकरीद या ईद-उल-अजहा के दौरान बकरी की बलिदान को कहते हैं। यह एक प्राचीन प्रथा है जो पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के इर्शाद और इब्राहिम (अब्राहम) के प्रमाण से प्राप्त हुई है।

कुर्बानी का अर्थ होता है अपने ईश्वर के लिए समर्पित करना। यह बकरीद के दौरान मुसलमान समुदाय के लोगों द्वारा अदा की जाती है। इस दिन मुसलमान लोग अपनी पूजा, नमाज़ और तसबीह (धार्मिक मंत्रों का जाप) के बाद बकरी की बलिदानी करते हैं।

बकरी की चयनित नस्लों में से एक बकरी को विशेष तैयारी के साथ चुना जाता है।
इस बकरी को मस्जिद में या बकरी की खरीद पर निर्धारित स्थान पर ले जाया जाता है।
वहां पर इमाम या आदर्श मुसलमान जो इस्लामी विधि को जानते हैं, बकरी की बलिदानी का अधिकार रखते हैं।

बकरी की बलिदानी के पूर्व बकरी को विशेष ढंग से संबंधित व्यक्ति द्वारा तैयार किया जाता है। बकरी के सिर पर चाकू या तीखी चारा लगाकर उसे तैयार किया जाता है। फिर उसे अदा करने से पहले बकरी को बांधा जाता है, जिससे वह दबंग न हो सके।

फिर बकरी के बालों की एक तिहाई हिस्सा और नाखून काटे जाते हैं
और तबीयती कागज़ का इस्तेमाल करके उसकी उम्र की जांच की जाती है।
अगर बकरी प्राप्त उम्र में है, तो उसे बकरी की बलिदानी के लिए मंजूर किया जाता है।
बकरी की बलिदानी के समय उसे चाकू द्वारा जल्दी से गला काट दिया जाता है,
जिससे उसका मरने का दर्द कम हो जाता है।
इसके बाद बकरी की लाश को अंधेरे स्थान में उतारा जाता है
और वहां पर उसका मांस वितरित किया जाता है।
इस्लामी धर्म में कुर्बानी का मकसद है ईश्वर के प्रति समर्पण, करुणा, और दया का अभिव्यक्ति करना।
कुर्बानी के द्वारा मुसलमान समुदाय के लोग अपनी निःस्वार्थता, त्याग, और सहानुभूति का संकेत देते हैं।
इसके अलावा, उन्हें यह भी याद दिलाया जाता है कि
जीवन में सर्वोपरि ईश्वर के प्रति समर्पण और आदर्शों का पालन करना आवश्यक है।
कुर्बानी का बयान यह प्रकट करता है कि धर्म, सेवा, और ईश्वर में
श्रद्धा के माध्यम से हम अपने आप को समर्पित कर सकते हैं और
उनकी मर्यादा का पालन कर सकते हैं। यह हमें एक अपार उच्चतम प्राणी की
महत्वपूर्णता, मानवीयता, और समर्पण के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है।

कब्रिस्तान पर फातिहा पढ़ने का तरीका | Kabristan Par Fatiha Padhne Ka Tarika


इस दुनिया में जो भी इंसान पैदा हुआ है उसे एक न एक दिन रुखसत हो जाना है

जो इस दुनिया से जा चुके है वह अपनी मगफिरत चाहता है ऐसे में आपको अपने खानदान से लेकर जो दुनिया से जा चुके है उनके लिए कब्रिस्तान पर जाकर मगफिरत की दुआ करना चाहिए

शब-ए बारात की रात में क्या पढ़े कब्र पर या कब्रिस्तान पर जाकर आइये जाने कब्रिस्तान पर फातिहा पढ़ने का तरीका
शब-ए बारात की रात में कब्र पर क्या पढ़े
कब्रिस्तान पर फातिहा पढ़ने का तरीका

मगफिरत की दुआ

शब-ए बारात की रात में कब्र पर क्या पढ़े
इस रात यानी शब-ए बारात की रात रहमत, बरकत, मगफिरत और फजीलत वाली रात है शब-ए बारात की रात की दुआ, इबादत अल्लाह पाक कबूल करता है क्योकि अल्लाह पाक रहीम करीम है इसलिए इस रात को कब्रिस्तान पर जाकर अपने खानदान वाले की बख्शीश की दुआ करनी चाहिए एंव फातिहा पढनी चाहिए

आइये जाने शब-ए बारात की रात में कब्रिस्तान पर फातिहा पढने का तरीका क्योकि अपने खानदान की बख्शीश आप नहीं करोगे तो कौन करेगा?

कब्रिस्तान पर फातिहा पढ़ने का तरीका

कब्रिस्तान पर जाकर आप कुरआन पाक की कुछ आयत, सूरह पढ़े इस तरह से आपके खानदान की बख्शीश के लिए दुआ मांग सकते है कब्रिस्तान पर आयत एंव दुआ जो पढना है वह निम्नलिखित है

जब कब्रिस्तान पर फातिहा पढने के लिए जाना हो तो पहले पाक साफ़ होकर वुजू करें उसके बाद कब्रिस्तान पर जाएं
अब कब्रिस्तान पर पहुचने के बाद सबसे पहले सलाम करें “अस्सलामु वालेकुम व रहमतुल्ला व बर्कातुहू बरकतुह“
सलाम करने के बाद आप अपने खानदान के जो मरहूमीन है उनकी कब्र पर जाएं
कब्र पर पश्चिम रुख करके खड़े हो जाए खड़े होने के बाद जो बताया गया उसे पढ़े
दरूद शरीफ ग्यारह मर्तबा, अलीफ लाम मीम जो याद हो पढ़े, सुरह काफिरून एक मर्तबा, सुरह इखलास तीन मर्तबा, सुरह फलक एक मर्तबा, सुरह नास एक मर्तबा, सुरह यासीन याद हो तो पढ़े और सुरह फातिहा एक मर्तबा पढ़े
इसके बाद की आयतुल कुर्सी, सुरह बकरा की आखिरी दो आयतें पढ़ ले अगर याद हो तो पढ़े इसे पढना अफजल माना जाता है
आखिर में 11 मर्तबा दुरूद ए पाक पढ़े
उसके बाद अल्लाह पाक की रहमत के लिए अल्लाह की बारगाह में “दुआ ए मगफिरत” के लिए दुआ करें
कब्रिस्तान पर फातिहा पढ़ने का तरीका मुकम्मल हुआ इसके बाद दुआ मांगे

मगफिरत की दुआ

मगफिरत की दुआ करने से पहले कब्रिस्तान पर फातिहा पढ़े जो बताया गया है
इसके बाद अल्लाह पाक की रहमत के लिए अल्लाह की बारगाह में मगफिरत की दुआ करे
अल्लाह पाक से रो रो कर दुआ मांगे दुआ मांगने के तरीका नीचे पढ़े:-
||या अल्लाह तू रहीम है, तू करीम है तू पाक बेनियाज है तू गहफुरु रहीम है तेरे सिवा

‘या मेरे अल्लाह कोई इबादत के लायक नहीं
‘या अल्लाह तू सारें जहाँ का मालिक है||

इसके बाद तीन मर्तबा “दरूदे इब्राहिम” पढ़े

उसके बाद नीचे जैसे बताया गया है ठीक वैसे मगफिरत की दुआ मांगे

||या अल्लाह मैंने तेरे “कलाम ए पाक” की तिलावत की
या अल्लाह मैंने इसे पढने में बेशक और बेशुमार टूटी फूटी गलतियां की होंगी
||या अल्लाह तू अपने फज़ल ओ करम से इन तमाम टूटी फूटी गलतियों को माफ फरमा दे

या अल्लाह मैंने जो तेरे बारगाह में कलाम ए पाक की तिलावत की उसे कबूल फरमा
इसका सवाब देश दुनिया के तमाम मुसलमीन और मुसलमान को

जो इस दुनिया को छोड़ चुके या इस दुनिया से रुखसत कर चुके है उन्हें पहुंचा

‘या मेरा अल्लाह दुनिया के तमाम मुसलमानो और मेरे खर खानदान के लोगो को दादा दादी ,,,,,,नाम जोड़े की मगफिरत अता फरमा

इसके बाद तीन बार दुरूद ए पाक पढ़ ले इस तरह मगफिरत की दुआ मुकम्मल हुई”

दरगाह पर दुआ कैसे मांगे?

क्या आप दुआ मांगने का सही तरीका जानना चाहते हैं ? तो इस आर्टिकल को पुरा आख़िर तक पढ़ें अल्लाह से दुआ मांगने का सही तरीका क्या हैं जानेंगे सही हादीस से और आप जानेंगे दुआ मांगने के क्या आदाब होते हैं।

अल्लाह से दुआ मांगने के लिए आप पहले वुजू कर लें क्योंकि वुजू की हालत में दुआ मांगना बेहतर होता है। उसके बाद क्ब़िले की तरफ़ मुंह करके बैठ जाएं। बैठने का तरीका यह है कि जैसे हम किसी नमाज़ में अत्तहीयात की हालत में बैठते हैं उसी तरह हमें दुआ के लिए भी बैठना है। पालथी मारकर हरगिज़ ना बैठे, इसे बेअदबी माना जाता है। लेकिन आप किसी मजबूरी में बैठ सकते हैं। 

अब आपको बताते हैं कि दुआ कैसे मांगी जाती है
सबसे पहले बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम पढते हुए अपने दोनों हाथों को दुआ के लिए उठायें सबसे पहले दरूद शरीफ पढ़ें फिर दुआ मांगते वक्त आप इस चीज का खास खयाल रखें की दुआ मांगने से पहले और बाद दुआ मांगने के आखिर में दुरूद शरीफ़ पढ़ें दुआ मांगते वक्त आपका ध्यान अल्लाह ताला की अजमत और कुदरत पर होनी चाहिए।

सबसे पहले दुआ में दुरूद शरीफ़ के बाद आप अल्लाह ताला की तारीफ़ बयां करें और उसमें अच्छे-अच्छे कलिमात पढ़े। दुरूद शरीफ़ का पढ़ना अफजल माना गया है एक हदीस में आया है की जो दुआ बगैर दरूद शरीफ के मांगी जाती है वह दुआ जमीन और आसमान के बीच मैं लटकती रहती है। और कबूल नहीं होती है इस बारे में हदीस में आता है ।

बड़े रहम करने वाले अल्लाह के सामने अपनी जरूरतों को पेश करें जब आप दुआ कर रहे हो तो रो-रो कर गिड़गिड़ा कर अपनी दुआ को कबूल कराएं और सब कुछ मांगने के बाद दुआ के आखिर में दरूदे पाक पढ़ें।

दुआ मांगने का सबसे अफजल तरीका यह भी है की जो दुआ मांगे वह हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के वास्ते से कबूल कराएं हुजूर का वास्ता दुआ कबूल होने का सबसे बड़ा जरिया है जब दुआ पूरी हो जाए तो अपने दोनों हाथों को मुंह पर फेर लें, और दिल में ये यकीन करें कि दुआ जरूर कुबूल होगी। अगर दुआ की कुबूलियत का असर ना दिखे तो गमगीन ना हो।

दुआ कबूल होने का वक्त

  1. रमजान के महीने में
  2. जुम्मे के दिन की एक घड़ी
  3. तहज्जुद के वक्त
  4. सुबह के समय (फज्र) की फर्ज नमाज के बाद
  5. सजदे में
  6. अजान और अकामत के दरमियान
  7. सेहरी के वक्त
  8. रोजे की हालत में
  9. कुरान मजीद की तिलावत के बाद
  10. लैलत-उल-क़द्र (laylat-ul-Qadr) की रात
  11. सफर में
  12. जब आप मरीज को देखने जाते हैं
  13. बारिश के दौरान

किस हालात में, दुआ सब से ज्यादा कबूल होती है

  1. वह इंसान जिसके साथ अन्याय हुआ हो या प्रताड़ित हो।
  2. जो इंसान जो मुश्किल दूर से गुजर रहा हो।
  3. जो इंसान जो सफ़र कर रहा हो।
  4. जो इंसान जो रोजा रखा हो।
  5. औरत जब बच्चे को जन्म दे रही हो।
  6. एक इंसान जो कुरान शरीफ़ पढ़ रहा है या पढ़ रहा हो।
  7. जो इंसान जो हज या उमराह कर रहा हो।
  8. जो इंसान जब दूसरे के लिए में दुआ करता हो।

हदीस

एक हदीस में आया है
रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया दुआ ही इबादत है यानी अल्लाह ताला से दुआ करना भी इबादत है

  • 1. अल्लाहु अकबर (सही बुखारी 842)
तर्जुमा: अल्लाह सबसे बड़ा है
  • 2. अस्तगफिरुल्लाह अस्तगफिरुल्लाह अस्तगफिरुल्लाह  3 मर्तबा पढ़ना है (मुस्लिम591)
तर्जुमा: मैं अल्लाह से बख्शीश तलब करता हूं
  • 3. अल्लाहुम्मा अन्तास्सलाम व मिनकस्सलाम तबारकता या जल जलाली वल इकराम (मुस्लिम 591)
तर्जुमा: ए अल्लाह तू सलामती वाला है, और तेरी तरफ ही सलामती है, तू बा-बरकत है, ए बुजुर्गी और इज्जत वाले

  • 4. सुभान अल्लाह (33) अल्हम्दुलिल्लाह (33)अल्लाह हू अकबर (34) मर्तबा (मुस्लिम 591)
  • 5. ला इलाह इल्लल्लाहु वहदहु ला शरीक लहु, लहुल मुल्कु वलहुल हम्दु वहुव अला कुल्लि शैइन क़दीर। 
तर्जुमा: अल्लाह के इलावा कोई सच्चा माबूद नहीं वह अकेला हे, उसका कोई साथी नहीं, उसी के लिए बादशाहत है, और उस के लिये तमाम तारीफ़ें हैं, और वह हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।
  • 6. अल्लाहुम्मा आ इन्नी अला जिक्रिका ब सुक्रिका ब हुस्नी इबादितिका (अबू दाऊद)  
तर्जुमा: हे अल्लाह अपना जिक्र करने शुक्र करने और अच्छे अंदाज में तेरी इबादत करने में मेरी मदद फरमा
  • 7.ला इलाहा अल्लाह हू वाह दहू ला सारिका ला हू लाहुल मुल्क ब लहुलहम्द ब हुबा अला कुल्ली साइन कदीर ला होला बला कुब्बाता इल्ला बिल्लाही ला इलाहा इल्लाल्लाहु बा ला नआ बुदु इल्ला इय्याहू लहुन्न निअ _मतु ब लाहुल फजलू ब लहूस सनाउल हसनु ला इलाहा इल्लाल्लाहा मुखलिसीन लहुद्दीन बलो करिहल काफिरून (मुस्लिम594)
तर्जुमा: अल्लाह के अलावा कोई सच्चा माबूद नहीं वह अकेला है उसका कोई शरीफ नहीं उसी के लिए बादशाह हद है और उसके लिए तमाम तारीफात और वह हर चीज पर कादिर है अल्लाह की तौफीक और मदद के बगैर गुना से बचने की ताकत और नगी करने की कूवत नहीं अल्लाह के अलावा कोई सच्चा माबूद नहीं हम उसी की इबादत करते हैं उसी के फज्ल है
  • 8. कुल्हुबुल्लाहा हु अहद ( 1) अल्लाह हु समद ( 2) लम यालिद बलम ( 3) बलम याकुल्लाहु कुफुबुन हाहद (4)( मुस्नाद अहमद)
तर्जुमा: ए नबी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम कह दीजिए अल्लाह एक ही है अल्लाह वह नियाज है ने उसने किसी को जना ने उसे कोई जना गया और कोई उसका हमसफर नही
  • 9. अल्लाहू ला इलाहा इल्ला हुबल हय्यूल कय्युम ला ता अ खुजूहू सिंतुबा बला नोम लहू माफिस्समावती बल अर्ज मंजल्लाजी यस फुहु इंदाहू इल ले विंजनी य अ लामू मा बेना अदेयेहीम बामा खलफुहुम बला युहीतू न विशेईम मिन इल्मीही इल ल विमा शाम ब सिया कुर सियुयुहुस समावति बल अर्जब ल यहुदु हिफ्जुहुमा ब हुबुल अलियुल अजीम। (अल बकरहा 285)
तर्जुमा: अल्लाह वह जात है जिसके इलावा कोई माबूद नहीं हमेशा जिंदा रहने वाला हे और सबको कायम रखने वाला है ने उसे ऊंघ आती है ने उसे नींद आती हे जो अस्मानो में हे जो जमीन मे है कोन है जो लोग उसके इल्म में से किसी चीज का अहाता नही हे मगर बह चाहे उसी की कुर्सी आसमानों और जमीन को घेरे हुए है और बही बड़ी सान वाला है
  • 10. अल्लाह हुम्मा इन्नी आयुजूबिका मिनल जुबनी ब आयुजूबिक अन अर्दा इला अजिलिल युमिरी ब आयुजूबिका मिनफितनातीत दुनिया ब आयुजूबिका मिन अजाबिल कबरी। (बुखारी 2822)
तर्जुमा: ए अल्लाह मे बुजदिल और कंजूसी से तेरी पन्हा चाहता हुं और जिल्लत की जिंदगी की तरफ लौटाए जाने से तेरी पन्हा चाहता हुं और दुनिया के फिटने से तेरी पन्हा मांगता हुं और अजाबे कब्र से तेरी पन्हा मांगता हुं
  • 11. अल्लाह हम्मा इन्नी अस अलुका नाफिया ब रिजकन तय्यबा ब अमलम मूता कब्बला। ( सहीह इबने माजहा,)
तर्जुमा: ए अल्लाह में तुजसे नफा मंद इल्म पाकीजा रिज्क और मकबूल अमल का सबाब करता हुं!
  • 12. ला इलाहा इल्लाल्लाह बहदुहु ला सारिका लहू लहुलमुल्क ब लाहुल हम्द युहुई ब युमित बायदिहिल खेर ब हूबा अला कुल्ली शेयेन कदीर (100 मर्तबा पढ़ें )
तर्जुमा: अल्लाह के सिवा कोई सच्चा माबूद नही बह अकेला है उसका कोई शरीक नही उसी के लिए बादशाहत हे और उसी के लिए सभी तारिफात बह जिंदा करता है और मारता है और बह हर चीज पर कुदरत रखता है।

अल्लाह तआला पर यकीन रखते हुए हमेशा दुआ मांगते रहे, और यह याद रखें कि अब तक आपकी दुआ कुबूल ना होने में आपका कोई बेहतर मुकद्दर है। जिसका आख़िरत में बहुत बड़ा सवाब मिलेगा।

आखिर में याद रखिएगा कि अल्लाह ताला ही हमें सब कुछ देने वाला है इसके सिवा हमें कोई भी कुछ भी नहीं दे सकता है हां इंसान जरिया जरूर बन सकता है।

दरगाह में हमें क्या करना चाहिए?

अजमेर, दरगाह शरीफ में सबसे अधिक बार देखा जाने वाला तीर्थस्थल

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की विश्व प्रसिद्ध दरगाह अजमेर में सबसे अधिक बार देखा जाने वाला तीर्थस्थल है। परिसर में कई स्मारक हैं; दरगाह के भीतर महत्वपूर्ण आकर्षणों में बुलंद दरवाजा नामक दो भव्य द्वार शामिल हैं, वह मकबरा जहां मोइनुद्दीन चिश्ती का मकबरा रखा गया है। यहाँ एक मस्जिद और एक विशाल देग भी है जहाँ विश्वासी धन दान करते हैं, जिसका उपयोग तब गरीबों और ज़रूरतमंदों को खिलाने के लिए किया जाता है। दरगाह पर एक लोकप्रिय प्रथा फूलों और एक चादर

(कपड़े की चादर) के रूप में प्रसाद चढ़ाने की है, जिसे पवित्र आत्मा से आशीर्वाद लेने वाले तीर्थयात्रियों द्वारा पवित्र संत की कब्र पर रखा जाता है। यह भी माना जाता है कि मंदिर में एक धागा बांधकर कोई भी मनोकामना पूरी कर सकता है, जिसे इच्छा पूरी होने पर उतारना पड़ता है।

सूफी संत के नाम पर प्रसाद चढ़ाने के लिए बड़ी संख्या में तीर्थयात्री दरगाह आते हैं जिन्होंने अपना जीवन समाज की भलाई के लिए समर्पित कर दिया। दरगाह परिसर के माहौल में त्रुटिहीन मुगल वास्तुकला, मंत्रमुग्ध कर देने वाली कव्वाली और चारों ओर अगरबत्ती की दिव्य सुगंध है।

एक घटना जो दरगाह के सच्चे सामंजस्यपूर्ण चरित्र को प्रकट करती है, वह वार्षिक उर्स है , जो छह दिनों का त्योहार है , जो प्रत्येक वर्ष चंद्र कैलेंडर के सातवें महीने रज्जब के दौरान आयोजित किया जाता है।

दरगाह पर आखिर क्यों चढ़ाई जाती है हरी चादर? जानें इससे जुड़े रोचक तथ्य

आपने यकीनन कई बार दरगाह गए होंगे, लेकिन क्या आपको पता है कि यहां हरी चादर क्यों चढ़ाई जाती है? अगर नहीं, तो आइए जानते हैं।  

भारत एक ऐसा देश है जहां हर धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। इसलिए यहां की सभ्यता विभिन्न संस्कृति को बखूबी बयान करती है। हालांकि, हर संस्कृति की अपनी अलग खूबसूरती है, जिसे एक लंबे संघर्ष के बाद इतिहास के पन्नों पर दर्ज किया है। साथ ही साथ भारत को विभिन्न आस्था का बहुत बड़ा केंद्र भी कहा जाता है।

इसलिए लोग अपनी मुरादों को पूरा करने के लिए मंदिर, मस्जिद, दरगाह, गुरुद्वारा आदि जाते हैं और यकीनन हर जगह लोगों की मुरादें पूरी भी होती हैं। हालांकि, कुछ लोग ज्यादातर दरगाह जाना पसंद करते हैं क्योंकि कहा जाता है कि यहां लोग सच्चे दिल से जो भी दुआ मांगते हैं, वो पूरी होती है। कहने के लिए तो दरगाह मुस्लिम धर्म का तीर्थ स्थल है लेकिन यहां आपको हर धर्म के लोग माथा टेकते दिख जाएंगे।

आप भी यकीनन कई बार दरगाह गए होंगे, लेकिन क्या आपको पता है कि मजार पर हरी चादर क्यों चढ़ाई जाती है? अगर नहीं, तो आइए दरगाह और इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में जानते हैं।

क्या है दरगाह?

दरगाह सूफियों का पूजा स्थल है, जिसे किसी प्रतिष्ठित वली, पीर या संत की कब्र पर बनाया जाता है। कब्र बनाने के बाद लोग इसकी जियारत करने के लिए आते हैं और चादर चढ़ाकर दुआ मांगते हैं। कहा जाता है कि दरगाह पर मांगी गई हर दुआ कबूल होती है। (इस मकबरे में मौजूद है मुगल बादशाह अकबर की कब्र)
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आखिर क्यों चढ़ाई जाती है चादर?
कहा जाता है कि जिस सूफी संत की मजार है उन्हें सम्मान देने के लिए चादर चढ़ाई जाती है। हालांकि, दरगाह पर चादर चढ़ाना इस्लाम का पार्ट नहीं है और ना ही चादर चढ़ाना जरूरी बताया गया है, लेकिन दरगाह पर चादर चढ़ाने का सही मतलबसंत को सम्मान देना है। (क्या सिर्फ तीन बार 'कुबूल है' कहने पर हो जाता है निकाह)

हरा रंग क्यों है जरूरी

हरा रंग इस्लाम धर्म में काफी पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि हरा रंग शांति और खुशहाली का भी प्रतीक है। इसलिए हम देख सकते हैं कि इस्लाम धर्म के झंडे से लेकर दरगाह की चादर तक सभी चीजें हरे रंग की होती हैं। मान्यता है भी कि इस्लाम की स्थापना करने वाले पैगंबर मोहम्मद को भी हरे रंग के कपड़े पहनना काफी पसंद था।

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होती है हर दुआ कबूल
कई लोगों का मानना है कि दरगाह पर चादर चढ़ाने से न सिर्फ दुआ कबूल होती है बल्कि घर में खुशहाली भी आती है। इसलिए लोग मजार के अंदर प्रवेश करने से पहले चादर चढ़ाते हैं और फिर दुआ मांगते हैं। हालांकि, हर बार चादर चढ़ाना जरूरी नहीं है। आप बिना चादर के भी दरगाह में प्रवेश कर सकते हैं।

उम्मीद है कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी। अगर आपको ये जानकारी अच्छी लगी तो जुड़ी रहिए हमारे साथ। इस तरह की और जानकारी पाने के लिए पढ़ती रहिए हरजिंदगी।

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