Header Notification

हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ( रह ० ) की मौत का किस्सा

 जब हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ की मौत का वक़्त करीब आया तो एक हकीम जी उनके पास थे । । उन्होंने कहा कि या अमीरुल - मोमिनीन , आप को जहर दिया गया है , मुझे आप की ज़िन्दगी की उम्मीद नहीं । उन्होंने फरमाया कि उस शख्स की ज़िंदगी का भी भरोसा न करना चाहिए । जिसे ज़हर न दिया गया हो । हकीम ने कहा कि क्या आपको भी अंदाज़ा है कि आप को जहर दिया गया है । हज़रत उमर ( रह ० ) ने फरमाया कि मुझे उसी वक्त पता चल गया था जब ज़हर मेरे अंदर गया । हकीम जी ने कहा कि आप इसका अभी इलाज करेंन नहीं तो आप की जान जाती रहेगी ।

 तो हज़रत उमर ( रह ० ) कहने लगे कि जिसके पास यह जाएगी ( यानि रब तआला ) वह सबसे अच्छा है । खुदा की कसम कि अगर मुझे यह पता हो कि मेरे कान के पास ऐसी चीज़ रखी है जिसमें इसका इलाज हो , मैं वहां तक भी हाथ न बढ़ाऊं । फिर फरमाया कि ऐ अल्लाह उमर को अपने लिए पसंद करले । कुछ दिनों बाद आप वफात पागए । 

हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ मौत को बहुत याद करते थे , किसी ने कहा कि आप ऐसा न किया करें क्यों कि आप के कारण अल्लाह ने हुजूर नबी - ए - करीम ( स ० ) की बहुत सी सुन्नतें जिंदा कर रखी हैं । तो फरमाया कि क्या मैं हज़रत यूसुफ अलैहि ० की तरह न बनूं जिन्हों ने अल्लाह पाक से यह दुआ की थी । " रब्बि तवफ्फनी मुस्लिमंव्व अलहिक्नी बिस्सलिहीन ० " यानी ऐ अल्लाह मुझे इस्लाम की हालत में मौत अता फरमा और नेक लोगों के साथ शामिल कर ।

मौत के वक़्त लगों ने कहा कि आपने जो पैसे दिए हैं उनसे बहुत मामूली कपड़ा आया है । इसमें कुछ बढ़ोतरी की इजाज़त . दे दो । आप फ़रमाने लगे कि कपड़ा मेरे पास लाओ । थोड़ी देर कपड़े को देखने के बाद कहने लगे कि अगर मेरा रब मुझसे राज़ी है तो इससे बढ़िया कफ़न मुझे मिल जाएगा और अगर वह नाराज़ है तो जो भी कफन होगा उसे ज़ोर से हटा दिया जाएगा और उसके बदले जहन्नम की आग का कफन होगा इस के बाद उन्हें उनके कहने पर बैठाया गया । वे कहने लगे कि या अल्लाह ! तूने मुझे ( जिन चीज़ों के करने का ) हुक्म दिया था , वह मैं कर न सका और तूने जिन चिज़ों से मना किया था मुझसे उनमें नाफरमानी हुई । लेकिन “ लाइलाह इल्लल्लाह ' ' इसके बाद वफात फ़रमाई । उस वक़्त यह भी फ़रमाया कि मैं एक जमाअत को देख रहा हूं लेकिन वह न तो आदमी है और न जिन्न । एक और कथन है कि मौत के वक़्त सबको अपने पास से हटा दिया और दरवाजे से झांक कर देखने लगे तो वे फरमा रहे थे कि बहुत मुबारक है । ऐसे लोगों का आना जो न इंसान हैं और न जिन्न । इसके बाद कुरआन मजीद की यह आयत पूरी पढ़ी । " तिल्कदारुल आखिरतु नअलुहा लिल्लज़ीन ला युरीदून अलुब्वन् फ़िल अर्ज़ि व ला फ़सादा वल् आकिबतु लिल्मुत्तकीन " ( सूरह कसस , पारा २० ) हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रह ० हर रोज़ आलिमों को बुलाते , जो मौत , आखिरत और कियामत का ज़िक्र करके ऐसा रोते जैसा कि जनाज़ा सामने रखा हुआ हो ।

Post a Comment

0 Comments